तुम्हारे शहर की फिज़ा | Kavita tumhare shehar ki fiza
तुम्हारे शहर की फिज़ा ( Tumhare shehar ki fiza ) तुम्हारे शहर की अलग फिज़ा हैं प्यार तो जैसे बिका पड़ा है … हैं ये नीलामी अपने ही दिल की , जर्रे जर्रे पर फरेब छुपा पड़ा है … हर कोई राजा है अपने दिल का शतरंज दिल का यहां बिछा हुआ है ……