मित्र कहां तक छुपोगे | Mitra Kahan tak
मित्र कहां तक छुपोगे ( Mitra kahan tak chupoge) लेखन की सुंदर वाटिका में, मित्र कहां तक छुपोगे। कब तक आंख मिचौली खेलोगे। हम भवरे हैं एक कली के, मंडराते हुए कभी मंच में,। कभी कविताओं में, कभी आमंत्रित करोगे कविता की चार पंक्ति में। कभी कविता के मंच में, कभी अनुभवों में, तो कभी…