नैना | कुण्डलिया छंद
नैना ( कुण्डलिया छंद ) नैना नैना से लडे, नैन हुए लाचार। मन चंचल हो मचल रहा, अब क्या करे हुंकार॥ अब क्या करे हुंकार, शेर मन नाही लागे। तडप रहा हर रात, कहत न पर वो जागे। क्या तोहे भी प्रीत, जगाए सारी रैना। सावन बनकर मेघ, बरसते रहते नैना कवि : …