Poem on nari

नारी | Poem on nari

नारी ( Nari )   घर सुघर होता है जिससे पल्लवित है प्रकृति सारी। जन्मदात्री  होकर  अबला ही कही जाती बेचारी।। सूर्य चांद  सितारे ग्रह  नक्षत्र  सब  जन्मे हुये हैं। थे  अदृश्य  जीव  सारे  नारी  से  तन में हुये है। ब्रह्मा  विष्णु  महेश  नारी  साधना  में रत रहे हैं। जगत की अम्बा है नारी आगम…