Poem Rah-E-Ishq

राह-ए-इश्क | Poem Rah-E-Ishq

राह-ए-इश्क ( Rah-E-Ishq )    उसकी पलकों के ओट से हया टपकती है, फिर भी देखो वो मौज-ए-बहार रखती है। दाना चुगने वाले उड़ते रहते हैं परिन्दे, क्या करे वो बेचारी तीर-कमान रखती है। शाही घरानों से नहीं हैं ताल्लुकात उसके, आसमां कीे छोड़, जमीं भी महकती है। दोष उसका नहीं, ये दोष है जवानी…