तपती दोपहरी | Poem tapti dopahar
तपती दोपहरी ( Tapti dopahar ) सन सन करती लूऐ चलती आसमां से अंगारे। चिलचिलाती दोपहरी में बेहाल हुए पंछी सारे। आग उगलती सड़कें चौड़ी नभ से ज्वाला बरसे। बहे पसीना तन बदन से पानी को प्यासा तरसे। आंधी तूफां नील गगन में चक्रवात चले भारी। गरम तवे सी जलती धरा फैले…