जमीं अपनी है | Poetry of Dr. Kaushal Kishore Srivastava
जमीं अपनी है ( Zamee apni hai ) पार कर कांटो को कली फूल बनी है । तपिश मिट्टी की ही तो हीरे की कनी है ।। राह में कांटे बिछे और दूर है मंजिल । राह और मंजिल में बेहद तना तनी है ।। झुग्गियां कीचड़ की तुमको खटकती क्यों हैं…