Rajasthani poem

मिनखपणो पिछाणो | Rajasthani poem

मिनखपणो पिछाणो ( Rajasthani kavita )     मुंडो देख र टीकों काढै गांठ सारूं मनुवार करै। घर हाळा सूं परै रवै और गांवा रा सत्कार करै।।   मीठी-मीठी मिसरी घोळे बातां सूं रस टपकावै। टोळ गुढ़ावै घणी मोकळी मतळब खातर झूक ज्यावै।।   माळा टूटी अपणेस री भायां री बातां लागै खारी। मेळ जोळ…