सफेदी का दर्द | Safedi ka Dard
सफेदी का दर्द ( Safedi ka dard ) मैंने तो मांगी थी खुशियां मुफ्त की वह भी तेरी दौलत के तले दब गई दौड़ तो सकती थी जिंदगी अपनी भी पर, वह भी अपनों के बीच ही उलझ गई. लगाए थे फूल, सींचे थे बड़े चाव से खिलकर भी महके पर बिक गए भाव…