sanjh suhani

देखो, आई सांझ सुहानी

देखो,आई सांझ सुहानी गगन अंतर सिंदूरी वर्ण, हरितिमा क्षितिज बिंदु । रवि मेघ क्रीडा मंचन, धरा आंचल विश्रांत सिंधु । निशि दुल्हन श्रृंगार आतुर , श्रम मुख दिवस कहानी । देखो,आई सांझ सुहानी ।। मंदिर पट संध्या आरती, मधुर स्वर घंटी घड़ियाल । हार्दिक आभार परम सत्ता, परिवेश उत्संग शुभता ढाल । परिवार संग हास्य…