विकसित भारत के स्वप्नद्रष्टा : डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम
उनकी आंखों में स्वप्न तैरता रहता है, भारत को 2020 तक विकसित देशों के समान समृद्ध शाली बनाने का, भारत के हर व्यक्ति को वह आवाहन करते हैं कि देश को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए संकल्पित हो, विशेष कर युवाओं की आंखों में वे यह स्वप्न भली भांति भर देना चाहते हैं।
वे स्वप्नदर्शी है प्यारे काका कलाम , जिनका जन्म तमिलनाडु के सागर तटीय गांव रामेश्वर की मस्जिद वाली गली से आरंभ होता है, जहां 15 अक्टूबर 1930 को उनका जन्म हुआ ।
वे स्वयं घोषणा करते हैं कि कलाम का जीवन प्रेरणाओं से सिंचित, उपलब्धियां से सज्जित एक सार्थक और उद्देश्यपूर्ण जीवन है। उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘अग्नि की उड़ान’ का समापन करते हुए लिखा है-” मेरी कहानी जैनुलाबदीन के बेटे की कहानी है।
जो रामेश्वर की मस्जिद वाली गली में 100 साल से ज्यादा दिन तक रहे और वही अपने शरीर को छोड़ा । यह उस किशोर की कहानी है जिसने अपने भाई की मदद के लिए अखबार बेचे ।
यह कहानी शिव सुब्रमण्यम अय्यर अयादुरे सोलोमान के शिष्य की कहानी है । यह उस छात्र की कहानी है एम के जी मेनन ने उठाया और प्रोफेसर सारा भाई जैसी हस्ती ने तैयार किया। और एक ऐसे नेता की कहानी है जिसे बड़ी संख्या में विलक्षण व समर्पित वैज्ञानिकों का समर्थन मिलता रहा ।
मेरी यह छोटी सी कहानी मेरे जीवन के साथ ही खत्म हो जाएगी । मेरे पास न धन है, ना संपत्ति ,ना मैंने कुछ ऐसा बताया जो शानदार हो , आलीशान हो, ऐतिहासिक महत्व का हो।’
कलाम के ये शब्द उनकी सरलता, साधुता , मानवता और राष्ट्र निष्ठा की कहानी स्वयं कहते हैं। उनके पिता जैनुलाबदीन की दिनचर्या बहुत सात्विक थी ।
प्रातः वह 4:00 बजे से पूर्व उठकर 4:00 बजे की नमाज पढ़ने के बाद 8 किमी पैदल चलते थे। कलाम जब थोड़े बड़े हुए और अपने पैरों चलने लगे तो पिता उनकी उंगली पकड़कर पूछते थे कि -” यह पंछी कहां जा रहे हैं, यह उड़ते समय क्या बोल रहे हैं ? सूरज की सारी किरणें कहां चली गई ,यह लाल रंग का गोला सा क्यों दिखाई पड़ रहा है? यह पानी में क्यों डूब रहा है? जब सूरज पूरा डूब जाता तो पूछते यह तो डूब गया अब क्या कभी नहीं आएगा?”
पिता बालक को समझाने का प्रयास करते। बचपन में बच्चों द्वारा की गई जिज्ञासा का यदि सही प्रकार से समाधान ना किया जाए तो वह कुंठित हो जाते हैं। यह बातें कलाम के पिता ने अच्छी तरह समझ लिया था। शाम को वह कलाम को रामेश्वर मंदिर में भगवान शिव के दर्शन कराने ले जाते ।
वहां वह पिता के कंधे पर बैठकर घंटे बजाते और फिर प्रसाद लेकर घर लौट आते । इससे उनके मन में बचपन से ही अहिंसा करुणा ,दया ,ममता ,सहयोग और सहकार के भाव पैदा होने लगे थे। पिता ज्यादा पढ़े लिखे तो नहीं थे परंतु इंसानियत, मानव धर्म और अच्छे गुणों के भंडार थे। वही कलाम के जीवन जो सरलता ,सहायता और स्नेहमयता थी उसके पीछे उनकी मां की ममता और प्यार था।
जहां कलाम के पिता उन्हें बड़ा आदमी बनने का सपना देखा करते थे वहीं उनके सकुशल रहने और एक अच्छा इंसान बनने की दुआएं किया करती थी।
कलाम की मां उन्हें बहुत प्रेम करती थी ।जब कलाम खेलने के लिए बाहर निकल जाते तो मां को यही लगता कि कोई मेरे बच्चे को ना मारे । मेरा बच्चा बहुत भोला है ।
वह लड़ाई झगड़ा करना जानता ही नहीं। गली के बच्चे बहुत शरारती है और चोट न पहुंचा दे। खाना भी कलाम मां के साथ खाना अधिक पसंद करते थे। वह कहते हैं कि -” रसोई में जमीन पर बैठकर केले के पत्ते पर मां के साथ खाना खाने में उन्होंने जो सुख पाया वह सुख मुझे फाइव स्टार होटल और राष्ट्रपति भवन के विविध प्रकार के व्यंजनों में भी नहीं मिला। “
हर मां को बेटे की बहू देखने का सपना होता है । मां ने जब कलाम से शादी की चर्चा की तो उन्होंने कहा-” मां मुझे इस बंधन में मत बांधो । जीवन बहुत छोटा है । काम बहुत अधिक है, मां मैं अपने जीवन में कुछ ऐसा काम करना चाहता हूं जिससे मेरे माता-पिता का नाम रोशन हो और देश की तरक्की हो। मां मैं यह जिम्मेदारी ठीक से निभा नहीं पाऊंगा ।
मां उठकर वहां से चली गई। कलाम को पहले ही अनुमान था कि विवाह के लिए मना करने पर मां के दिल को ठेस अवश्य लगेगी । परंतु कलाम विवश थे।उन्होंने मन ही मन संकल्प किया -” मां तेरा दिल दुखाया है मैंने , मैं तेरा गुनहगार हूं , पर इस दुख को मैं अपने जीवन की प्रेरणा बना लूंगा।
इस दुख के कारण तुम्हारी आंखों से निकले आंसुओं की कीमत तो मैं नहीं चुका पाऊंगा, परंतु अपनी मेहनत और लगन से यह साबित कर दूंगा कि मेरा यह फैसला सार्थक था।” मां को दिए गए वचन के अनुसार कलाम ने जी तोड़ मेहनत की, रात दिन एक करते हुए वह अपने काम में जुट गए।
जब जब उन्हें निराशा घेरती या हौसले में थोड़ी कमी आती वह अपनी मां को याद कर लेते थे । 8 – 9 वर्ष की अवस्था में ही कलाम ने जिम्मेदारियां निभाने सीख लिया था ।
यह अपने चचेरे भाई शमसुद्दीन के साथ अखबार बेचने में सहयोग करने लगे थे। बचपन के शिक्षक अयादुरे सोलोमन का कलाम बहुत आदर करते थे । वह कलाम से अक्सर कहा करते थे कि -“तुम अपने अंदर झांक कर के तो देखो। तुम्हारे अंदर एक बड़ी प्रतिभा बैठी है ।
उसे पहचानो ,मेहनत और लगन से उसका विकास करो।”
डॉक्टर कलाम कहते कि-” भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है । कमी है पक्के इरादों की, आत्मविश्वास की और बड़े सपनों की । जब युवा शक्ति जागती है, जब वह बड़े विचारों और बड़े सपनों के साथ जीना चाहती है तो उसे कोई नहीं रोक सकता ।”
वह युवाओं को अपना उदाहरण देते हुए कहते हैं कि-” जब रामेश्वरम गांव का एक लड़का रॉकेट मिसाइल का परमाणु बना सकता है तो बड़े-बड़े नगरों में रहने वाले लड़के -लड़कियां विज्ञान में नई ऊंचाईयां क्यों नहीं छू सकते।
सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग , कृषि एवं खाद्य पदार्थ, उड्डययन ,रक्षा अनुसंधान ,अंतरिक्ष तकनीक व रसायन इंजीनियरिंग आदि क्षेत्रों में अनंत संभावनाएं छिपी है । बस आगे बढ़कर करेंगे तो भारत की आर्थिक व सामाजिक उपलब्धियां इतनी अधिक हो जाएगी कि वह एक विकसित देश बन जाएगा ।”
डॉक्टर कलाम मिसाइल मैन के साथ ही एक अच्छे कवि, कथाकार एवं संगीतज्ञ भी है। कभी-कभी वह छोटी कहानियां जो प्रायः उन्हीं की लिखी होती थी अपने सभी वैज्ञानिकों को भी सुनाते थे । वह वीणा के रसिक हैं। वीणा वादन से उन्हें असीमित ऊर्जा मिलती है और वह अपने आप को तरोताजा महसूस करते हैं।
देश के प्रति महान कार्य के लिए उन्हें सन 1997 में भारत सरकार ने ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। इसके पूर्व पद्म भूषण, पद्म विभूषण मिल चुके थे ।
टाइम्स आफ इंडिया के प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आर के लक्ष्मण ने एपीजे अब्दुल कलाम को लेकर गांधीवादी मिसाइल मैन की संज्ञा देकर सम्मानित किया । उनके लिए सम्मानित करने वाला भी स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है ।
वह अपने देश को 2020 तक निश्चय ही विकसित देशों की कतार में खड़ा देखने के स्वप्नदर्शी है । अपनी योजना का खाका तैयार करते हुए उन्होंने स्पष्ट किया है-” सन 2020 तक या उससे पहले भारत को विकसित देश बनाना एक सपना नहीं है ना ही केवल यह आशा है बल्कि यह तो हम भारतवासियों के जीवन का एक मिशन है जिसे हम पूरा करके ही दम लेंगे। “
१३ नवंबर २००१को जब उन्हें वैज्ञानिक सलाहकार के पद से मुक्ति मिली तो वह अन्ना विश्वविद्यालय में शिक्षण कार्य प्रारंभ करने से पूर्व भारत भ्रमण की इच्छा पूरी कर लेना चाहते थे । अतः वह विभिन्न स्कूलों के बच्चे ,शिक्षक, कर्मचारी, व्यवसायी आदि के बीच निकल पड़े ।
बच्चों और युवाओं के बीच डॉक्टर कलाम को लगा कि विकास की सारी संभावनाएं नई पीढ़ी में मौजूद है। यदि हम नई पीढ़ी को योग्य बना दे तो वह हर चुनौती का मुकाबला करने और हर दायित्व को ठीक से निभा पाने में सक्षम हो जाए तो निश्चय ही हम आजादी के बाद अधूरे रह गए सपने को पूरा करने में सफल होंगे ।
डॉक्टर कलाम 25 जुलाई, 2002 को जब मुख्य न्यायाधीश वी एन कृपाल ने राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई तो उनके नाम के साथ ही राष्ट्रपति पद की गरिमा बढ़ गई। देश की जनता को पूरा भरोसा है की डॉक्टर कलाम उनकी अपेक्षाओं पर खड़े उतरेंगे।
डॉक्टर कलाम का जीवन स्वयं में प्रेरणा स्रोत से कम नहीं है ।यदि आज के राजनेता एवं धर्मगुरु अपने निजी स्वार्थों की तिलांजलि देकर उनके स्वप्न को साकार करने के लिए भारतीय युवाओं के मन में सपने दिखा सके तो भारत को 2020 में विकसित राष्ट्र बनाने से कोई नहीं रोक सकेगा।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )
योग शिक्षक – मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान तेलियरगंज प्रयागराज
यह भी पढ़ें:-