सनातन

सनातन | नाटिका

पात्र परिचय :
पात्र परिचय :
गुरुजी  उम्र 72 वर्ष ।
पंडित जी उम्र 50 वर्ष भंते जी उम्र 52 वर्ष।
एंकर उम्र 28 वर्ष विद्यार्थी राहुल उम्र 26 वर्ष।
विद्यार्थी रमेश चतुर्वेदी उम्र 28 वर्ष।
विद्यार्थी सागर वर्मा उम्र 27 वर्ष।
विद्यार्थी जितेंद्र चव्हाण (मराठी) उम्र 28 वर्ष।
विद्यार्थी (रजनी डांगे) उम्र 26 वर्ष।
जेम संग (जापानी विद्यार्थी) उम्र 28 वर्ष।
मांगीलाल मेघवाल (राजस्थानी) उम्र 27वर्ष
सूर्य किरण (तमिलियन) उम्र 27 वर्ष।
तीन श्रोता वक्ता  उम्र 30 से 40 वर्ष के बीच सभी की।
निर्मला पुजारिन (शिव की)  उम्र 22वर्ष ।
भिक्षुणी अर्चना  उम्र 21 वर्ष।
विद्या लड़की उम्र 20 वर्ष।
इंटेलेक्चुअल पर्सन  उम्र 50 वर्ष।

मंच व्यवस्था:
ओपन ऑडिटोरियम।
स्टेज पर स्क्रीन पर्दा पड़ा हुआ है। जिस पर
सुस्वागतम की धुन से स्वागत गीत फिल्माया हुआ दिखाया जा रहा है। जिसमे सात सुंदर लड़कियां हाथ जोड़कर,सुंदर स्वर में,सुंदर मुद्राओं में सुंदर नृत्य कर रही हैं।
सभी दर्शकगण आ रहे हैं। गीत की धुन से सराबोर होते हुए स्क्रीन पर चल रही वीडियो को देखते हुए अपनी-अपनी सीट पर विराजमान हो रहे हैं। दर्शकगण भव्य स्वागत से आनंदित व गर्वित महसूस कर रहे हैं।
होस्ट कॉलेज गर्ल्स उन्हें तरह तरह की
कोल्डड्रिंक और हॉट ड्रिंक ऑफर कर रही हैं।
सभी चेयर पर बैठते ही, ड्रिंक हाथ में पकड़ कर चाय ,काफी और विभिन्न कोल्ड ड्रिंक्स की चुस्कियां लेते हैं। सुस्वागतम गीत को एंजॉय करने लगते हैं।

सुस्वागतम🙏
सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम।🙏

सुकोमल ,करबद्ध करकमलों से सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम।🙏

सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम🙏
सुस्वागतम।🙏
सुस्वर, सुवाणी,
सुंदर वचनों से सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम।🙏

सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम ।🙏

सुसंस्कारी, सुझंकृत , सुंदर नृत्य से सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम।🙏

सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम🙏 सुस्वागतम
स्वागत गीत का फिल्मांकन खत्म हुआ। पर्दा गिरा।

पर्दे के पीछे से समय की धीर गंभीर आवाज।
“मैं समय हूं।
समय का चक्र ।”

पर्दा उठा ।

पर्दे के पीछे स्क्रीन पर्दे पर बड़ा सा पहाड़ । पहाड़ पर एक भव्य मंदिर । भगवा रंग से पुता हुआ। मंदिर के ऊपर भगवा झंडा लहराता हुआ। मंदिर के अंदर बड़ी सी “शिव पार्वती” की मूर्ति।
मूर्ति के सामने बैठे पंडित जी । (भगवा रंग की धोती में)

पंडित जी अपने हिंदू भक्त जनों के सामने आरती उतारते हैं ” “ओम जय जगदीश हरे। 2
स्वामी जय जगदीश हरे।भक्त जनों के संकट । 2
पल में दूर करें।
ओम जय जगदीश हरे”
भक्त जन ” दोहराते हैं।”
पंडित जी
“ओम जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा,
तुम अंतर्यामी।
पार , ब्रह्म , परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी।”
भक्तजन ” दोहराते हैं।”

पंडित जी आरती उतारकर थाली सभी भक्तजन को देते हैं और आरती लेने को बोलते हैं।
सब भक्तजन लाइन लगाकर आरती लेते हैं। भक्तजन आरती की थाली में पैसे डालते हैं। ₹100 ।
₹50।
₹20।
पंडित जी एक एक भक्तजन के माथे पर भगवा तिलक लगाते हैं । आरती लेने के बाद पंडित जी वापस अपनी आसन पर विराजमान हो जाते हैं। फिर सभी भक्तजनों को बैठने का इशारा करते हैं। भक्तजन बैठ जाते हैं। पंडित जी जोर से बोलते है ” सनातन मेरा धर्म है । हिंदू मेरी पहचान है।
हम सनातनी हैं।”
भक्त जन भी जोर से बोलते हैं” सनातन मेरा धर्म है । हिंदू मेरी पहचान है। हम सनातनी हैं।”
पंडित जी और जोर से दोहराते हैं।” सनातन मेरा धर्म है। हिंदू मेरी पहचान है । हम सनातनी हैं।
भक्तजन भी और जोर से दोहराते हैं।_”सनातन मेरा धर्म है। हिंदू मेरी पहचान है। हम सनातनी हैं।”

पर्दा गिरा ।
पर्दा उठा ।
पर्दे के पीछे स्क्रीन पर्दे पर एक बड़ा सा ऊंचा पहाड़ । पहाड़ पर
मंदिर । मंदिर में शिवजी की मूर्ति । निर्मला(हिंदू लड़की) शिव भजन करती है_”
ओम जय शिव ओमकारा..। 2
प्रभु जय शिव ओमकारा…। 2
सांसों की माला पर सिमरु मैं शिव का नाम। हर प्राणी का मूल समझना ।
यह सब है अनमोल।
शिव ही है हर प्राणी में हर प्राणी में शिव का धाम ।
सांसों की माला पर सिमरु मैं शिव का नाम।”
पर्दा गिरा।
पर्दा उठा।

पर्दे के पीछे स्क्रीन पर्दे पर एक बड़ा सा पहाड़ । पहाड़ पर सरस्वती जी की मूर्ति।

सरस्वती की मूर्ति के सामने खड़े होकर “विद्या” ( हिंदू लड़की)
सरस्वती वंदना करती है ”
सरस्वती नमस्तुभ्यं
वारदे काम रूपिणी विद्यारंबम करिश्माई सिद्धि बावथूमे सदा।”

पर्दा गिरा।
पर्दा उठा।
पर्दे के पीछे स्क्रीन पर्दे पर बड़ा सा पहाड़। पहाड़ पर बड़ा सा बुद्ध विहार। जो गहरे भगवा रंग से पुता है।बुद्ध विहार पर पंचशील का झंडा लहराता हुआ।
भगवान बुद्ध (अवलोकितेश्वर )
और मां तारा की बड़ी बड़ी भव्य मूर्तियां।
भंते जी गहरा भगवा रंग का चीवर पहने बैठे हैं। उनके सामने साधक गण बैठे हैं।भंते जी धम्म पद गाते हैं। ”
“सुगत तथा..गत सम्यक संबुद्ध।
ये ही विधि सुधि गा ..ऊं।
साधक गण ” सुगत तथा..गत सम्यक समबुद्ध।ये ही विधि सुधि गा.. ऊं।”
भंते जी:”बुद्ध काल की पावन स्मृति को
श्रद्धा.. सुमन चढ़ाऊ….।”
साधक गण: “बुद्ध काल की पावन स्मृति को श्रद्धा.. सुमन चढ़ाऊ..”
भंते जी:
“मानवता का दुख हरने को ,
निज का.. दुख सब त्यागा.. ।”
साधक गण : “मानवता का दुख हरने को
निज.. का.. दुख सब त्यागा..।”
भंते जी:
“त्याग दिया महलों का वैभव ,
चित्त में वै..राग्य जा गा….।”
साधक गण: “त्याग दिया महलों का वैभव,
चित्त में वै..राग्य जागा…।”
भंते जी:
“महामानव तम हरता.., तुम्हारे चरणों.. में शीश झुकाऊं…।”
साधक गण : “महामानव तम हरता…
तुम्हारे चरणों.. में शीश झुकाऊ..।”
भंते जी:
“सुगत तथा..गत सम्यक समबुद्ध,
ये ही विधि सुधि गाऊं …।”
साधक गण : “सुगत तथा..गत सम्यक संबुद्ध, यही विधि सुधि गाऊं..।”

एक बौद्ध भिक्षुणी “रजनी” (हाथ जोड़ कर )साधना करती है ”
ब्रह्मेंद्र देवेंद्र नरेंद्र राजन बोधी सुबोध सबोधी करुणा भावसागरम ।
दीप जलतम जलतम। बंधमी बुद्धम परशुराम।” भंते जी इसका अर्थ साधकों यानी भिक्षु और भिक्षुणियों को बताते हैं: जो ब्रह्म अधिपति देवड़ी पति नरेंद्र हाथी पति है। और जगत में उत्तम बुद्धि ज्ञान लाभ करने तथा करुणा गुण में सर्वश्रेष्ठ है । ऐसे प्रज्ञा अलखित भवसागर से पार करने वाले भगवान बुद्ध को मैं वंदन करती हूं और दीप जलाती हूं ।”
फिर भंते जी एक और धम्म गाते हैं-
“न ही वेरेन वे रानी,
सम्मन्तिध कुदाचनम।
एवरेन च सम्मन्ति,
सभी सत्ता सुखी होंतू।
एस धम्मो सनांतनो।”
अर्थात “यहां इस लोक में कभी भी बैर से बैर शांत नहीं होता।
अबैर से बैर शांत होता है। संसार के सभी प्राणी सुखी रहें।
यही सनातन धर्म है।”

भंते जी आरती की थाली नहीं घुमाते। पैसे लेने के लिए।

पर्दा गिरा ।
पर्दा उठा ।
पर्दे के पीछे स्टेज पर स्क्रीन पर्दे में बड़ा सा
बुध विहार। बुद्ध विहार में भिक्षुणी महा थेरी महा प्रज्ञावती “भिक्षुणी खेमा” की भव्य मूर्ति जो रानी से धम्म की शरण में आ गई थी और बुद्ध के थेरे गाती थीं। यानी कीर्तन करती थी। जिसे “सुरसती ” कहा जाता था। उसके ही थेरे को यानी बुध की गाथा गाई जाती है “भागवत चिट्ठी भगवा ।
भगकोंडाती भगवा।
इतिपे सो भगवा ।
अरहम समा समबुद्धों नमो तस्स भगवतो
अरहतो समा संबुद्धस्य।”

पर्दा गिरा।
पर्दा उठा ।

पर्दे के पीछे स्टेज पर पड़े स्क्रीन पर्दे पर “काली माता” का भव्य मंदिर । मंदिर में काली मां के जय-जय कारे हो रहे हैं ।
(शेरावाली मां, दुर्गा मां जिसे चामुंडा देवी भी कहा जाता था।)
“जय दुर्गे माता .
जय भवानी ।
जय दुर्गे माता ।
जय भवानी।
जय संतोषी माता।
जय शेरा वाली।”

पर्दा गिरा ।
पर्दा उठा।

पर्दे के पीछे स्टेज पर स्क्रीन पर्दे पर भव्य
उग्रतारा या ग्रीन तारा देवी का भव्य विहार ।
भगवान बुद्ध का “मातृ उग्र रूप” जिसे “चामुंडा देवी “और “काली देवी” भी कहा जाने लगा ।
जिसे बाद में “मृगमरीचि ” या “मरियम” भी कहा जाने लगा था । नरसिंह अवतार के रूप में उनकी आराधना इस तरह हो रही है।
“ओम जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा। ब्रह्मा , विष्णु ,सदा शिव अर्धांगी धारा ।
ओम शिव ओम शिव पे चक्र आनंद पंचानन राजे।
स्वामी पंचानंन राजे।
हंसो नन गरुणासन विश्व हर साबे।
ओम जय शिव ओंकारा। दो भुजा चार चतुर्भुज दशभुज ते सोवे।
तीनों रूप निरखता ,मुंड माला धारी ।
जगकर्ता दुखहर्ता जग पालनकर्ता।
विघ्न स्वामी जी की जय ओम मनवांछित फल पावे।
ओम जय शिव ओम कारा”
साधकगण दोहराते हैं।

फिर भिक्षुणी साधकों को उपदेश देती हैं ”
इन्हें भगवती जगदंबा भी कहा जाता था।….
महामाया जिन्हें बोधिसत्व मां तारा के रूप में पूजा जा रहा है। मां दुर्गा , मां पार्वती। यह मां का रूद्र रूप है जिसके आठ हाथ हैं ।
जो शेरों पर बैठी हुई हैं। जो काली मां का रूप भी धारण किए हुए हैं ।
जो उग्र हैं । युद्ध में लड़ती हैं । नरसंहार करती हैं।”

पर्दा गिरा ।
पर्दा उठा ।
पर्दे के पीछे स्टेज पर पड़े स्क्रीन पर्दे पर शिवलिंग की मूर्ति पर दूध और फूल स्त्रियों द्वारा चढ़ाए जा रहे हैं।
शिवलिंग की परिक्रमा की जा रही है।
“बम बम भोले।
बम बम भोले ”
शिवलिंग के कीर्तन गाए जा रहे हैं।

पर्दा गिरा।
पर्दा उठा
पर्दे के पीछे स्टेज पर पड़े स्क्रीन पर्दे पर सुंदर और भव्य बौद्ध स्तूप विराजमान है। भिक्षुगण बैठे हैं। भिक्षुणिया भी बैठी हैं। वे सब बौद्ध स्तूप से मनौती मांग रहे है । सभी बौद्ध स्तूप की परिक्रमा कर रहे है।” बुद्धम शरण गच्छामि ।
धम्मम शरणम गच्छामि। संघम शरणम गच्छामि।”

पर्दा गिरा।
पर्दा उठा।

पर्दे के पीछे स्टेज पर पड़े स्क्रीन पर्दे पर एक भव्य
जटाधारी शिव विराजमान हैं। जिनकी स्तुति की जा रही है ।जिनके हाथ में हथियार यानी शस्त्र हैं ।
सर पर गंगा है ।
सर पर ही चंद्रमा है। समुद्र मंथन की कथा से शिव को नीलकंठ कहा जा रहा है ।

पर्दा गिरा।
पर्दा उठा ।
पर्दे के पीछे स्टेज पर पड़े स्क्रीन पर्दे पर भव्य
जटाधारी बुध बैठे हैं। उनके हाथ में त्रिरत्न हैं। मुकुट पर बुद्ध विराजमान है ।
वह कमल पर सवार हैं। और नागों का साथ है। ऊपर से नाग उन्हें आच्छादित किए हुए हैं।

पर्दा गिरा ।
पर्दा उठा ।
पर्दे के पीछे स्टेज पर पड़े स्क्रीन पर्दे पर महेश्वर यानी शिव पार्वती मतलब “अर्धनारीश्वर” की भव्य मूर्ति। और उनकी पूजा अर्चना चल रही है ।

पर्दा गिरा ।
पर्दा उठा ।
पर्दे के पीछे स्क्रीन पर्दे पर बांग्लादेश से आई भव्य मूर्ति “बोधिसत्व बुद्ध ” (अवलोकितेश्वर शिव) यानी महेश्वर यानी शिव पार्वती । यानी मां ग्रीन तारा और बुद्ध की मूर्ति मतलब शिव पार्वती की आराधना चल रही है।

पर्दा गिरा।
पर्दा उठा।।

पर्दे के पीछे स्टेज पर पड़े स्क्रीन पर्दे पर एक
तीसरी शताब्दी ईसापूर्व में मिले सांची स्तूप में महामति गौतम बुद्ध की माता महामाया
“गज लक्ष्मी माता ” की भव्य मूर्ति । जिनका मंदिर आज भी नाशिक में है। उनकी पूजा अर्चना हो रही है ।

पर्दा गिरा।
पर्दा उठा ।
पर्दे के पीछे स्टेज पर पड़े स्क्रीन पर्दे पर लक्ष्मी जी की भव्य मूर्ति।
जय लक्ष्मी माता की जय जय कार चल रही है।

पर्दा गिरा।
पर्दा उठा।

नेपथ्य के भीतर से स्वर”( गुरु जी का) सनातन भारत की मूल शक्ति है । आज हम सनातन की परिभाषा के बारे में विचार विमर्श करेंगे । इस चर्चा का एक ही मकसद है कि मनुष्य जाति शांति से रहे । सब मिलकर मानव जाति की भलाई कर सकें । यही अभिलाषा है । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस देश के हैं। किस धर्म के हैं। किस जाति के हैं ।
हमारा एक ही उद्देश्य है कि भविष्य की पीढ़ियां बुद्धिमान हों। ऊर्जावान हों।और वे राष्ट्र और विश्व उत्थान में अपना सफलतम योगदान दे सकें । तभी इस दुनिया की भलाई होगी। धार्मिक द्वेष न रहे। जो सच्चाई है वह सामने आए । और हम सभी सच्चाई को खुले हृदय से स्वीकारें। एक दूसरे को गले लगाए। अपनी गलतियों के लिए पश्चाताप करें । एक दूसरे को माफ करें। सारी बातें स्पष्ट हो जाएं।
पर्दा उठा।

एंकर “गुड इवनिंग टू ऑल रिस्पेक्टड इंटेलेक्चुअलस, ऑल रिलिजिययांस ऑफ़ द वर्ल्ड हिस्टोरियन, पॉलीटिशियंस और सभी साहित्यकारों का बहुत-बहुत स्वागत है। आज की हमारी नाटिका का शीर्षक है” सनातन” आशा है आप सभी ओपन माइंडेड होकर देखेंगे ,सोचेंगे ,समझेंगे और पार्टिसिपेट भी करेंगे। ”

पर्दा गिरा ।

दर्शकगण की तालियों से हॉल गूंज उठा ।

पर्दा उठा ।

प्राचार्य (एक गुरु ) जी का प्रवेश । वे स्टेज के बीचो-बीच दरी पर आकर बैठे ।
फिर एक विद्यार्थी का प्रवेश । “प्राचार्य जी प्रणाम”
गुरुजी “प्रणाम । प्रणाम । बैठो।”
विद्यार्थी राहुल “बैठता है।(दाएं हाथ की तरफ गुरुजी की)
दूसरा विद्यार्थी रमेश चतुर्वेदी “गुरुजी प्रणाम। ”
गुरु जी ,” प्रणाम ।प्रणाम। बैठो।
रमेश चतुर्वेदी (उनके साथ ही दूसरी साइड में पड़ी दरी पर ) बैठता है। तीसरा विद्यार्थी सागर वर्मा (बिहार से )गुरुजी_” प्रणाम ”
गुरुजी “प्रणाम ।(और इशारा करके बैठने को कहते हैं )
सागर वर्मा जी_ बैठते हैं।
चौथी विद्यार्थी रजनी डांगे (मराठी लड़की) ” गुरुजी “प्रणाम।”
हाथ जोड़कर “प्रणाम”
गुरु जी “हाथ ऊपर उठाते हुए प्रणाम लेते हैं। (उनको भी साइड में बैठने को का इशारा करते हैं)
पांचवा विद्यार्थी जितेंद्र चव्हाण (मराठी) गुरुजी ” प्रणाम ”
गुरु जी ” प्रणाम। (साइड में बैठने को कहते हैं)
छठा विद्यार्थी मांगीलाल मेघवाल (राजस्थानी) ” गुरु जी प्रणाम।”
गुरु जी ” प्रणाम” ( साइड में बैठने का इशारा करते हैं।
सातवां विद्यार्थी जेनपंग (जापानी ) “गुरु जी प्रणाम।”
गुरुजी ” प्रणाम । (साइड में बैठने के लिए बोलते हैं)
आठवां विद्यार्थी सूर्य किरण (तमिलियन) गुरुजी “प्रणाम ”
गुरु जी “प्रणाम “( राइट साइड में बैठने के लिए कहते हैं )
सूर्य किरण साइड में बैठ ते हैं ।
गुरुजी “तो आज हमारी चर्चा का विषय है “सनातन”
गौतम बुद्ध वाणी आपने सुनी। जिसमें वे धम्म , को सनातन कह रहे हैं। और हिंदू कहते हैं कि हमारे धर्म का नाम सनातन है। । क्या सच है? आप सभी इतिहासकार ,धार्मिक विमर्शक , खासकर भारतीय इतिहासकार इस पर रिसर्च कर रहे हैं । यह चर्चा बहुत आवश्यक चर्चा है। भारतीय इतिहास की। भारतीय सनातन धर्म की । भारतीय संस्कृति की । शिव पार्वती देवी देवता की। अवलोकितेश्वर बुद्ध और मां तारा देवी देवता की। शिवलिंग की। बुद्ध स्तूपों की। ”

पर्दा गिरा ।
पर्दा उठा ।

एंकर” राहुल जी आप इस विषय पर रिसर्च कर चुके हैं । अतः सबसे पहले आप अपने विचारों से हमे समृद्ध करें ।”
राहुल” सभी को नमस्कार।( पर्चा पढ़ते हुए)
तीसरी शताब्दी ईसापूर्व सांची स्तूप में महामति गौतम बुद्ध की माता महामाया गज लक्ष्मी है । बाद में लक्ष्मी हो गई जो लक्ष्मी के वर्तमान स्वरूप का पूर्व रूप है। भूतपूर्व रूप है गज लक्ष्मी । वर्तमान रूप है लक्ष्मी ।
“शिव पार्वती” की मूर्ति और प्राचीन “बोधिसत्व अवलोकितेश्वर व मां तारा” की मूर्ति।

इसमें भूतपूर्व अवलोकितेश्वर व मां तारा बुद्ध हैं और बुद्ध के भी अनेक रूप हैं । जिन में ब्रह्म पाणी बुद्ध और मां तारा बुद्ध और अनेक बुद्ध आते हैं उनकी परंपरा में उनमें से यह दो रूप बुद्ध के हैं । अब तक 12 जगह पर शिव ज्योतिर्लिंग ,सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर ,ओंकारेश्वर केदारेश्वर ,भीमाशंकर, देवेश्वर, विश्वनाथ, त्रयंकेश्वर , बैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर ,दुश्मेश्वर में स्थापित कर दिए हैं ।

ये स्थान मूल है । ये सब अवलोकितेश्वर जी के हैं। जिन्हें अब शिव जी के नाम से जाना जाता है । महाकाल के नाम से जितने भी देश में मंदिर हैं। वे भी अवलोकितेश्वर जी के शक्ति स्थल हैं ।जिन्हें शिवजी कहा जाने लगा।

स्वामी विवेकानंद की शिष्या विख्यात” सिस्टर निवेदिता” ने foot falls of Indian history ( फुट फॉल्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री ) नामक ग्रंथ में माना है कि बुद्ध को ही वैदिक ब्राह्मण ने शिव बनाया।”
धन्यवाद।
एंकर  अब हमारे अगले वक्ता हैं श्री सागर वर्मा। कृपया अपने विचारों से हमें प्रकाशित करें।”
सागर वर्मा खड़े हुए “सभी को नमस्कार। (पर्चा पढ़ते हुए) एक बात ध्यान देने योग्य है कि बोधिसत्व सरस्वती का एक रूप है ।

यह नालंदा महाविहार से प्राप्त “सरस्वती” की मूर्ति है। ( मूर्ति को स्क्रीन पर्दे पर ददिखाते हैं) पाली भाषा में इसे “सुरसती” कहा गया है। जिसके सर पर बुद्ध बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं।” सुरसती” उन महिला भिक्षुओं को कहा गया था जो सुर के साथ “थेरे “यानी “गाथा” गाती थी। यानी बुद्ध का “कीर्तन”करती थी ।

महाप्रज्ञावती, महाथेरी भिक्षुणी (रानी खेमामूति )जो रानी से धम्म की शरण में आ गई थी। जो बुद्ध की गाथा गाती थी । महाथेरी महाप्रज्ञावती “बोधिसत्व” का ज्ञान कला स्वरूप है । इसी प्रकार उनके अन्य दो स्वरूप हैं ।

पहला समृद्धि लक्ष्मी रूप यानी लक्ष्मी देवी।दूसरा रुद्र रूप यानी ग्रीन तारा मां तारा रूप यानी काली देवी।
समृद्धि की देवी को लक्ष्मी की देवी कहा गया मां ग्रीन तारा को काली की देवी कहा जाने लगा।”
धन्यवाद।

पर्दा गिरा
पर्दा उठा ।

एंकर “प्रोफेसर राहुल वर्मा कृपया आप अपने विचार रखें ”
प्रोफेसर राहुल वर्मा खड़े होकर ” सभी प्रबुद्ध जन को नमस्कार।मैं हिस्टोरियन हूं। (पर्चा पढ़ते हुए)सम्राट अशोक ने हिमालय में बुद्ध स्तूप बनवाया था। (The gang in myth and reality,stevan G.Darian, Honolulu,1978,P-5-7 डी गैंग इन द मिथ एंड रियलिटी स्टीवन जी डार्विन 1978 पेज 52527 ) पर लिखा है कि आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने बद्रीनाथ की मूर्ति को (जिसे बुद्ध नाथ से बद्रीनाथ कहा जाने लगा ) शिव घोषित किया और “बद्रीनाथ बौद्धस्तूप” को शिव का मंदिर “बद्रीनाथ मंदिर” घोषित किया।

तिब्बत के थॉलिंग नामक बौद्ध लामा आज भी बद्रीनाथ में बुद्ध की पूजा करते हैं ।अर्थात शिव वास्तव में बुद्ध ही हैं। और “शिव का बद्रीनाथ धाम” वास्तव में “बद्रीनाथ बौद्ध स्तूप” है। (डॉ प्रताप चार्ट से बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क। )
प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद जी के अनुसार आठवीं शताब्दी में ये “जगन्नाथ” हो गया।

जिसे “लोकनाथ” (पाली भाषा में ) कहा। प्रमाणिक नाम उड़ीसा के राजा “इंद्रभूति” ने अपनी पुस्तक (“ज्ञान सिद्ध” संस्कृत भाषा के बीस परिच्छेद में जो वंदना है)में “इंद्रभूति” कहते हैं “मैं बुद्ध के रूप में जगन्नाथ की वंदना करता हूं।” उनका पुत्र “पदमसंभव” ने तिब्बत में जाकर लांबा संप्रदाय की स्थापना की।

तिब्बत और नेपाल में आज भी बुद्ध को ही जगन्नाथ कहा जाता है। 80 सिद्धियों में से 42 में नंबर पर राजा “इंद्रभूति” का नाम है। आज भी कोलकाता के जगन्नाथ मंदिर में बुद्ध मूर्ति है। मतलब बुद्ध ही जगन्नाथ है। कबीर पंथी ग्रंथ लक्ष्मण दिशा के” सिद्ध साहित्य “नामक पुस्तक में धर्मवीर भारती ने कहा अब कलजोग बैठेगा सोई बौद्ध स्थापना
हमरो कोई
जगन्नाथ मम नाम है सोई हमरी थापना यही विधि होई।”
आल्हखंड (सुमीरिनी) देवी देवताओं का “सुमिरन” मतलब “स्तुति” या स्मरण। बुद्ध की स्तुति में कहा गया है _”
थिर गए सुमिरो जगन्नाथ को कलजुग बोद्धरूप अवतार ।

विंध्यवासिनी को मैं सु मरू ,
जो निकली है फोड़ी पार।”
उड़ीसा में है जगन्नाथ मंदिर। उड़िया के आदि कवि संत “सरलादास”( शुद्र मुनि) हैं।
15वीं शताब्दी के महाभारत के 18 अध्याय में आदि कवि “संत सरलादास “बुद्ध शाक्य मुनि थे।उनके अनुसार_
“संसार जन्म को तारि बानी बनने बुद्ध रूपारे बीजि अच्छा जगनाथे।” मतलब दुनिया को ता रण करने हेतु बुद्ध ही जगन्नाथ बन गए ।”
धन्यवाद।

एंकर ” गुरु जी का आदेश है की अगर कोई श्रोता गण अपनी बात कहना चाहें तो कह सकते हैं।”
श्रोताओं में से एक हाथ उठा।
एंकर “जी सम्मानित साथी आप अपनी बात रखें।”
श्रोता खड़े होकर “कबीर पंथी अपने दादाजी के गुरु से मैने सुना था कि समुद्र पर सतगुरु का आसन लगा है ।जगन्नाथ मंदिर वहीं पर बना है ।”
दूसरे श्रोता खड़े हुए और बोले “लोकनाथ, आलोक नाथ ,अमिताभ, शाक्य सिंह शाक्य ,मुनि गौतम सिद्धार्थ ,और जगन्नाथ ऐसे कई नाम हैं तथागत भगवान बुद्ध के। बुद्ध का नाम लोकनाथ व जगन्नाथ होने के कारण ही भारत को विश्व गुरु भी कहा जाता था।”

एंकर _ अब मैं बुलाना चाहूंगा सुश्री रजनी डांगे जी को को जो महाराष्ट्र से आई हैं।”
रजनी डांगे _”खड़ी होकर और बुद्ध थेरी गाती हैं। ..
भग्ग मोहोती भगवा।
भग्ग रागोती भगवा।
भग्ग दोसोती भगवा।
भवान अंतकरोती भगवा।
भग्ग दिठ्ठी भगवा।
भग्ग कोरड़ती भगवा।
इतिपि सो भग्ग अर्हम समासम्बुद्धो।
नमो तस्य भगवतो अर तो समासंबुद्धस्य ”
फिर इसकी व्याख्या करते हुए कहती है भगवा रंग नहीं भगवान बुद्ध होते हैं । भगवान वचन अर्थात बुद्ध द्वारा बोला गया । डिक्शनरी ऑफ पाली लैंग्वेज (आरसी चिल्ड्रस) के अनुसार भगवा बुद्ध का गुण या विशेषण है। बुद्ध पूर्व जो कि बुद्धों के लिए न होकर केवल शाक्य मुनि बुद्ध के लिए उपयोग किया गया है ।इसलिए जो भगवा है ।वही बुद्ध है। और जो बुद्ध है । वही भगवा है।

इसलिए छोटे-छोटे बौद्ध स्तूप बनाकर लोग मन्नते मांगते थे। इन्हें शिवलिंग बाद में कहा गया । कन्याएं उनके जैसा अच्छा वर मांगती है। सम्राट अशोक ने बुद्ध की अस्थियों को 84 हजार भागों में विभाजित कर उन अस्थियों को पवित्र अस्थि कलशों में रखा और उन पर 84 हजार स्तूप बनवाएं। जिन स्तूपों की स्तुति करके उनसे कुछ मन्नतें मांगी जाती हैं। इसलिए उनकी पूजा की जाती है।”

पर्दा गिरा।
पर्दा उठा।
एंकर  “अब मैं बुलाना चाहूंगा प्रोफेसर सूर्या किरण जी को जो तमिलनाडु से हैं।”
सूर्या किरण (तमिलियन) ” नमस्ते। ( पर्चा पढ़ते हुए) “बुद्ध” के साथ “धम्म” और “संघ ” की यानी इन “त्रिरत्नों” की पूजा आज भी अनेक जगह पर की जाती है । जगन्नाथ पुरी में कृष्ण बलराम की। सुभद्रा (मंदिर) पंढरपुर में विट्ठल, रुक्मिणी, सत्यभामा। इसमें कृष्ण और विट्ठल वास्तव में बुद्ध हैं। सुभद्रा और रुक्मणी वास्तव में धम्म है।
बलराम और सत्यभामा वास्तव में संघ के प्रतीक हैं।
वैष्णवो ने “त्रिरत्नों” की अलग-अलग नामों से पूजा जारी रखी थी। महापरिनिर्वाण मतलब “महापरिनिब्बान” पाली का शब्द है । जिसका अर्थ है कभी भी किसी भी अवस्था में दोबारा पैदा नहीं होने के साथ राग द्वेष ,मोह से नहीं लिपटना।
महा-  सबसे बड़ा
परि-  चारों ओर अथवा लोक के आगे जैसे पृथ्वी के आगे।
न नहीं या नो
वान- बनना या उत्पन्न होना ।
मतलब नो ट्रांसफॉर्मेशन।
तो महापरिनिब्बान का अर्थ है  पुनः नहीं पैदा होना। दुबारा उत्पन्न नहीं होना।”

श्रोता उठकर ” गुरु जी मैं इस विषय पर कुछ प्रकाश डाल सकता हूं।!”
गुरु जी ” हां हां जरूर ।”
श्रोता ” गणेश जी को गणपति गणों के पति से परंपरा में “अवलोकितेश्वर”( शिव) पार्वती (मां तारा) का बेटा माना जाता है। शिव मंदिरों के बगल में गणपति की मूर्ति पाई जाती है । गणेश जी का भाई कार्तिकेय शुभम सुब्रह्मण्य है ।

क्योंकि शिव अपने ध्यान मग्न भ्रमण पर थे। तो पार्वती ने स्नान करते समय मिट्टी का लड़का बनाया जिसे पहरेदार के रूप में बिठाया था । गणपति बौद्ध धर्म में विनायक के रूप में भी जाने जाते हैं। वज्रयान बौद्ध धर्म (तिब्बती बौद्ध) तांत्रिक बौद्ध स्रोतों में गणेश को आमतौर पर बोधिसत्व अवलोकितेश्वर के उद्भव के रूप में प्रस्तुत किया जाता है ।

भारत और थाईलैंड में भी गणेश को विघ्नहर्ता और सफलता का देवता माना जाता है। जैन धर्म में किंचित तौर पर भी गणेश पूजा होती है । सबसे पुरानी ज्ञात जैन गणेश प्रतिमा लगभग नवमी शताब्दी की है ।

गणेश की छवियां राजस्थान और गुजरात के कुछ जैन मंदिरों में दिखाई देती हैं।एलिफेंटा केव में मौजूद बुद्ध को ही गणेश कहा जाता है ।

पूरे भारत में जो भगवान शिव मंदिर हैं। वहां बुद्ध मंदिर हैं। मंदिर को जब गौर से देखा जाए तो बुद्ध की मूर्तियां है जो की टूटी हुई हैं। उनके मुंह और हाथ को काट दिया गया है या वे तोड़ दी गई या छुपा दी गई प्रतीत होती हैं।”
धन्यवाद।

पर्दा गिरा ।
पर्दा उठा ।
एंकर ” अब जितेन्द्र चव्हाण जी अपने विचारों से हमे संपन्न करें ।”
जितेंद्र चव्हाण (महाराष्ट्र) “सभी को नमस्कार । ( पर्चा निकालकर पढ़ते हुए) मैं कहना चाहता हूं कि महाकाली मां तारा, उग्रतारा ,काली , भैरवी, बजरंग शाखा भगवान शिव महायान शाखा के हैं। “बंब “मौर्य अपनी नगरी में बुद्ध अस्थि कलश की पूजा करते थे । इसलिए उनकी मातृ देवता को बंबमाता ,बंब आई (माता) “बंबई” कहा जाने लगा। बंबई मतलब बंब मौर्य की नगरी जहां पर बुद्ध के अस्थि कलश की पूजा होती है।

बंबई से बॉम्बे और मुंबई नाम बने हैं।” मुंबा देवी” विहार जिसे अभी मुंबादेवी के नाम से जानते हैं। मतलब बुद्ध के अस्थि कलश की देवी के रूप में पूजा। बुद्ध का अस्थि कलश वास्तव में पूरी दुनिया के लिए पूजा का केंद्र बन चुका था।

इसलिए बुद्ध अस्थि कलश को जगत माता, जगत अम्मा ,जगत अंबा, जगदंबा, अम्मा, अंबा ,ऐसे अलग-अलग नाम से पूजा जाने लगा। ( buddhist jewels.in Mortuary cult, Arpitharani sengupta,P. Liti बुद्धिस्ट ज्वेल्स . इन मोर्चरी कल्ट अरपिता रानी सेनगुप्ता पेज एल आई टी आई डॉ प्रताप चाटसे, इतिहास संशोधक ,बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क का लेख )”
धन्यवाद।

एंकर  हमारे अगले वक्ता हैं राजस्थान से
मांगीलाल मेघवाल।
मंगीलाल मेघवाल
(राजस्थानी) उठे “सभी को नमस्कार। इस विषय पर मेरे विचार इस प्रकार हैं।(पर्चा पढ़ते हुए) शाक्य लोग पूर्णतया मातृ सत्तात्मक और महिला प्रधान थे । इसलिए उन्होंने बौद्ध त्रिरत्नाें (बुद्ध ,धम्म, संघ ,)यानी अंबा ,अंबिका, अंबालिका की तीन माता के रूप में पूजा शुरू की जिन्हें “त्रिअंबा” कहा जाता है ।

अंबा, अंबिका और अंबालिका यह तीन शब्द मात्र देवता है । राजस्थान के मेघवाल लोगों को भांबि कहा जाता है। भांबि, बंबी, बंब मतलब बुद्ध अस्थियों की पूजा करने वाले लोग। बुद्ध की अस्थियों को अस्थि कलश में रखकर पूजा जाता है ।अस्थि कलश गोलाकार होता है। इसलिए आज भी अंबा, माता, जगदंबा ,माता की मूर्तियां गोलाकार पत्थर की होती है ।

बुद्ध की अस्थियों को जिसअस्थि कलश में रखा जाता था। उन अस्थियों से ही हड्डी हांडी ,हंडिया, हिंडिया फिर इंडिया कहा जाता था। अफगानिस्तान में हड्डा शहर को बुद्ध की अस्थियों के कारण हड्डियों से हड्डा कहा जाता था ।

अर्थात बुद्ध के अस्थि कलश की पूजा अंबा माता पूजा में तब्दील हुई अर्थात अंबा माता वास्तव में बौद्ध मातृ देवता है। त्रिअंबा मतलब जहां तीन अस्थि कलशो पर तीन स्तूप बनाए गए हैं । वह स्थान है । त्रियंबकेश्वर मतलब तीन बुद्ध अस्थि कलशो की तीन ईश्वर के रूप में पूजा का स्थान। ” जिसे बाद में ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहा जाने लगा।
धन्यवाद।

पर्दा गिरा।
पर्दा उठा
एंकर ” अब संघर्ष वाहने जी अपने विचारों से हमे अवगत कराएं।

संघर्ष वाहने ” नमस्कार।(पर्चा पढ़ते हुए) मैं यह कहना चाहता हूं कि शिवजी बुद्ध का क्रमिक विकास है। सिंधु सरस्वती इंडस वैली सभ्यता की 4500 साल पुरानी “पशुपति सील” । इसे शिव सील के रूप में भी जाना जाता है। इनमें त्रिरत्न या बैल के सींग है। इस शील का यजुर्वेद और महाभारत में उल्लेख है कि शिव अपने सिर पर सींग धारण करते थे ।.. स्तूपों में बुद्ध का बोधिसत्व बनने के लिए क्रमिक विकास दिखाई देता है ।

चैत्य स्तूप में सात श्रेणियां हैं। जैसे सम्यक, समबुद्ध ,बुद्धिसत्व, संबोधि, अवलोक कितेश्वर आदि । इसलिए चैत्य के रूप में उनकी पूजा की जाती थी ।17वीं सदी तक नरसिंह बुद्धिज्म का हिस्सा थे।

दुश्मनों को शत्रुओं का नरसिंहार करके नरसिंह रूप को विष्णु बनाना बुद्ध के ही रूप हैं । मतलब ब से बुद्ध ब से वैद्यनाथ ब से बद्रीनाथ ब से बुद्ध ब से बासुकीनाथ ब से बटेश्वर नाथ ब से बजरंगबली ब से बमकाली ब से बांके बिहारी ब से विष्णु एवं ब से ब्रह्म ब से विश्वनाथ ब से वैष्णोदेवी। यानी बुध सत्य है बुद्ध शिवम है। मतलब कल्याणकारी हैं। तो वही सुंदर है मतलब बुद्ध ही सत्यम, शिवम, सुंदरम हैं।”
धन्यवाद।

पर्दा गिरा।
पर्दा उठा
एंकर “अब हमारे सामने चतुर्वेदी जी अपने विचार रखेंगे”
रमेश चतुर्वेदी जी “( पर्चा पढ़ते हुए) यह सब सच है । हां हमने इन सब का व्यवसायीकरण किया है। हम पंडित हैं। पूजा तो हमने बुद्ध धर्मावलंबियों से ही सीखी थी।
दीप जलाना । कृतज्ञता के भाव रखना ।
बौद्ध जन पूजा मानसिक शांति के लिए श्रद्धा भाव से करते थे। परंतु हमने करनी कथनी में अंतर करके आपकी भावनाओं से खेल कर आपसे पैसा खींचा है। हां हमने ही इसी तरह रण के प्रतीक को बौद्ध धर्म के पतन के बाद कॉपी कर शिव शंकर के त्रिशूल में तब्दील कर दिया। मां तारा , (काली देवी) दूसरे साइड में अष्टदल कमल अष्टांगिक मार्ग अलग-अलग 8 हथियार( शस्त्र)। अष्ट शस्त्र अष्टांगिक मार्ग को दिखलाता है ।

इनके हाथ उनकी अनेक शक्तियों के रूपों में दर्शाए गए हैं । मूर्ति अनेक हाथों वाली है। “मरिआई “मतलब मरीचि बौद्ध देवता है। मरीचि को “महाअवलोकितेश्वर” के पत्नी के रूप में जाना जाता है। बौद्ध धम्म में मरीचि को युद्ध की देवता माना जाता था जो मारा के खिलाफ युद्ध का नेतृत्व करती थी ।

जब वह युद्ध में नेतृत्व करती थी तब उसे दुर्गा या भवानी के नाम से संबोधित किया जाता था। दस मारा पर विजय पाकर महिलाएं बोधिसत्व बनती थीं। दस माराएं हैं_ मद, लोभ, क्रोध ,वासना माया ,ईर्ष्या ,द्वेष, नकारात्मकता, स्वार्थपरता, घृणा, अहंकार यानी खुद के दुर्गुणों पर विजय।

मार पर विजय प्राप्त कर बुद्ध ने धम्म का निर्माण किया था।.. हां मित्रों मैंने पढ़ा है कि मरीचि को युद्ध बीमारी तथा बुराइयों के प्रकोप से बचाने वाली देवी के रूप में भी पूजा जाता है। प्राचीन बौद्ध परंपरा में बुद्ध को मां “अवलोकितेश्वर ” और धम्म को “प्रज्ञापारमिता” बताया गया है। आगे चलकर महा अवलोकितेश्वर को महेश्वर ,शिव और “प्रज्ञापारर्मिता” को मरीचि, दुर्गा या भवानी कहा जाने लगा। शेरावाली वैष्णो देवी युद्ध के समय जो लड़ती थी । वैदिक लोग
इन्हें उषा देवी भी कहते हैं। ”
धन्यवाद।
एंकर” अब हमारे सामने जापानी विद्यार्थी जेन संग जी अपने विचार रखें।”
जापानी विद्यार्थी जेनसंग “नमस्कार।जापानी में मरीचि को “मरिशितेन” कहा जाता है । सूर्य की तरह मरीचि देवता (सात घोड़े के रथ पर सवारी करता हुआ शिल्प मिला ) बहुत ही ज्यादा पूजा जाता है ।”
धन्यवाद।

श्रोता कुछ बोलने की अनुमति लेने के लिए हाथ खड़ा किया।
गुरु जी “(सर हिलाकर) “हां ”
श्रोता “हरियाणा में शीतला देवी को शीतल करने वाली देवी कहा जाता है और बच्चों को जो माताऐं (चेचक) निकलती थी पहले शीतला देवी झाड़ू से उस बीमारी पर नीम के पानी से या नीम की पत्तियों से झाड़ती थी फिर ठंडे पानी से नहलाती थी और उनको शीतल करती थी इस तरह से ही बच्चों की बीमारियों को दूर करती थी।
दूसरे श्रोता ने हाथ खड़ा किया।
गुरु जी ( सर हिलाकर) “हां”
दूसरा श्रोता ” सारनाथ से मिली शिव रूप में जटाधारी बुद्ध प्रतिमा शंकर की है। जटाओं वाले बुद्ध के भिक्षुओं को अर्हहत महादेव संखर कहा जाता था। हजारों शंकर, संखर, शंकर हुए । मूछ वाले। दाढ़ी वाले । गृहस्थ एकाकी, बैरागी.. ।
शंकर बुद्ध के ही प्रचारक थे। जटाधारी बोधिसत्व को ही गुप्तेश्वर काल में शीव ,शिव , शिवा तथा महादेव कहा जाने लगा। शिव मतलब मंगल कारी,कल्याणकारी । जो व्यक्ति सभी जीवों के कल्याण के लिए अपना संपूर्ण जीवन लगा देता है। ”
धन्यवाद।

सभी प्रतिभागी “एक साथ हाथ खड़े करते हुए।”
गुरु जी ” बोलिए आप सब जो बोलना चाहते हैं।”
सभी प्रति भागी एक साथ खड़े होकर एक स्वर में “गुरु जी हम सभी चाहते है कि सभी मूर्तियों को आज गर्भगृह से निकालकर सार्वजनिक किया जाए। जैसे गणपति को सभी भक्त बाहर व अंदर पूजते हैं वैसे ही।”
गुरु जी “” आज्ञा है।”

जोर जोर से हवाएं चलने लगीं। धूल मिट्टी हटने लगी।
तभी स्टेज के ऊपर धीर ,गंभीर आवाज_
“मैं समय हूं।
आगे आगे घूमते हुए मेरे ऊपर गर्त चढ़ गई थी।
समय पर चढ़ी गर्त आज झड़ गई ।
आज समय भी रुक गया है ।..क्षण भर के लिए
ठहरा ही नहीं बल्कि आज समय का चक्र पीछे घूम रहा है।
कभी घर और विहार पहाड़ के अंदर बनते थे।
कभी जमीन पर पहाड़ जैसी बिल्डिंग बन गई।मंदिर बन गए।
कभी मूर्तियां ,विहारों, मंदिरो व घरों के अंदर हो गई।
तो कभी गणपति को बाहर लाया गया। वे सबके लिए हाजिर हुए।
आज सभी देवता व देवियां बाहर आएंगे।
अपनी प्रजा को आशीर्वाद देने जैसे हर वर्ष गणपति आते हैं ।”
प्रकाश अत्यंत मद्धिम।

स्टेडियम में ही शोर गुल। दर्शकों के बीच से ही कट्टर लोगों का धार्मिक झगड़ा ।
“हमारे देवता बाहर क्यों?
गर्भगृह से बाहर क्यों?,”

दूसरे धार्मिक कट्टर जन
” हम भी तो उन्हें पूजते हैं। हम भक्त नहीं हैं क्या?…
आप तो पुजवाते हो।
हम तो सच्चे तन मन से पूजते हैं , उन्हें मानते हैं। वो हमारे ऊपर दया और करुणा बरसाते हैं। हम उनके अत्यधिक कृतज्ञ हैं। उनमें आस्था रखते हैं। हम उनके आपसे बड़े भक्त हैं।”

तू – तू, मैं- मैं।
गाली- गलौज
झगड़े- फसाद।
खून- खराबा।
मार- काट हो रही है ।
छुरी- चाकू चल रहे हैं।

तेज हवाएं और तेज हुईं। घूूं….. घुऊं….।…
आंधी आई । मूर्तियों पर पड़ी लाल चुनरी, पीली साड़ी,आदि उड़ा ले गई।
मुकुट ,आभूषण टूट गए। कुछ उतर गए।

बिजली चमकी, बादल गरजे ।
फिर
बारिश आई। घन घोर बारिश के पानी से मूर्तियों पर चढ़ी हल्दी ,कुमकुम,राख उतर गई। रहे सहे वस्त्र चिपक गए।

बारिश के पानी और खून में लथपथ सभी जन।मूसलाधार बारिश में भी मार काट मची है। उनके मुंह से ध्वनि”बम बम भोले।2
जय माता की।” 2

एकाएक बारिश थमी।
मूर्तियां नहाई धोई। धुलकर साफ होकर
असली रूप रंग में चमकने लगीं।
सनातन संस्कृति प्रकाशमय होने लगी।
सनातन देवी _ देवता अपनी आभा बिखेरने लगे।
सब मूर्तियां “अवलोकितेश्वर बुद्ध” की निकलीं।
“बोधीसत्व मां तारा” की निकलीं।
“गजलक्ष्मी माता” की निकलीं।
सभी शिवलिंग “बोद्ध स्तूप” निकले। सभी मूर्तियां अपने तेज और ओज से सभी जन को आकर्षित करने लगीं।

नेपथ्य के पीछे से घोषणा” कृपया झगड़ा न करें। बल्कि अपने भगवानों पर एक नजर डालें।”
झगड़ालू लोगों ने जैसे ही अपने भगवानों को देखा। वे हतप्रभ रह गए। मूर्तियों के वास्तविक स्वरूप को देखकर और बारिश में भीग कर धार्मिक जन भीगी बिल्ली बन गए।
उनके हाथों से भाले,चाकू गिर गए।
होंठ सिल गए।

दर्शक दीर्घा में से एक इंटेलेक्चुअल पर्सन “(खड़े होकर ) जोर से बोलता है ” इट इज रियली फेसिनेटिंग देट वी वारशिप देट सेम गॉड्स देट आवर एंसेस्टर्स यूज्ड टू वारशिप देट थाउजेंड्स ईयर्स अगो” मतलब
यह बहुत आश्चर्य की बात है कि आज भी हम उन्हीं भगवानों को पूज रहे हैं जिन्हें हजारों साल पहले हमारे पूर्वज पूजते थे।

गुरु जी “इससे साफ प्रतीत होता है कि बौद्ध परंपरा का रूपांतरण हुआ है ।
बोधिसत्व अष्टविनायक प्रथम पूज्य “बुद्ध” हैं।
बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का रूपांतरण शिव (अर्धनारीश्वर) एवं दूसरे रूप विष्णु में होता है। बोधिसत्व विनायक हमारे “गणेश” है।
बुद्ध के लिए जगत सत्य है । वही बाद में ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या हुआ। जगन्नाथ मंदिर के गुम्बद के ऊपर आठ आरे का धम्म चक्क है।
दीपावली पर गणेश लक्ष्मी पूजन में बुद्ध और उनकी माता महालक्ष्मी की ही हम पूजा करते है।
माता रुम्मन देई को गर्भावस्था में स्वप्न आता है हाथी का। इसलिए माता लक्ष्मी के दोनों तरफ हाथी की अभिनंदन करती हुई मूर्तियां होती हैं।
यही माता बाद में चलकर महालक्ष्मी बनती है ।
वज्रयान की देवी तारा से सरस्वती ,काली , दुर्गा,भवानी (मतलब यह भवसागर अर्थात संसार चक्र को पार करने में मदद करने वाली प्रज्ञापारमिता अर्थात तारा देवी ) अवतरित होती है।
बौद्ध स्तूप धीरे धीरे शिवलिंग में परिवर्तित हो जाते हैं।
मतलब हमारी सनातन बुद्ध परंपरा चल रही है। सनातन एक संज्ञा नहीं विशेषण है। कोई धर्म सनातन हो सकता है, पर सनातन नाम का कोई धर्म नहीं है । इसलिए सनातन शब्द बौद्ध धम्म के लिए ही कहा गया था।
“ऐस धम्मो सनांतनों”

अन्य दर्शक गण भी (खड़े होकर )” ओम नमः शिवाय
ओम अवलोकितेश्वर।
ओम गणपति
ओम गणेश
जय भवानी ।
जय मां तारा ।
जय सरस्वती।
जय सुरसती।
जय लक्ष्मी ।
जय गज लक्ष्मी।”

दूसरे दर्शकगण से सामूहिक आवाज
“पूजा हम अभी भी करेंगे। लेकिन चढ़ावा नहीं चढ़ाएंगे। कर्मकांड नहीं करेंगे । ढकोसले नहीं करेंगे। गंदगी नहीं मचाएंगे ।
हवन ,कुंड नही करेंगे।
सिर्फ दिया जलाएंगे।
फूल चढ़ाएंगे और अपने आराध्य देव की पूजा करेंगे । उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करेंगे।
यही सनातन परंपरा है।
जय सनातन।
जय सनातन धम्म।”

पर्दा गिरा।
नेपथ्य के पीछे से धीर गंभीर स्वर “बुद्ध धर्म और हिंदू धर्म की सच्चाई सामने आ गई है। हम सभी हिंदू धर्मावलंबी व बौद्ध धर्मावलंबी औरअन्य धर्मावलंबी भारत की सच्चाई को, सनातन संस्कृति को खुले हृदय से स्वीकारते हैं । हिंदुओं के शिव और बोद्धों के बुद्ध एक ही हैं। एक ही मूलशक्ति है। जो पहले हुआ सो हुआ । अब हम सब एक हैं। हमारे देवता व देवियां भी एक ही हैं। आओ हम सब भारतीय बनकर उन्हें स्वीकारें उनके प्रति श्रद्धा रखें।
जय सनातन।”

लाइटऑफ।
पर्दा गिरा।
समाप्त

Dr. Suman Dharamvir

डॉक्टर सुमन धर्मवीर
विशाखापत्तनम

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