मेरी ट्रेन यात्रा | Meri Train Yatra
अभी गर्मी की छुट्टी चल रही है हर काॅलेज और विश्वविधालय में पठन – पाठन का कार्य बंद है कहीं समर कैंप तो कहीं कुछ चल रहा है हम भी गर्मी छुट्टी मनाने के लिए अपने गाँव आए कुछ दिन रहने के बाद मन ही नहीं करता कि वापस विश्वविधालय जाऊँ।
लेकिन मेरे चाहने से भी कुछ नहीं होगा वहाँ अलगे सरकार का दबाव है कि 75 प्रतिशत हाजिरी जरूरी है नहीं तो परीक्षा में भी बैठने नहीं दिया जाएगा इस डर से और गार्जियन के डर से भी हम छुट्टी मनाकर अपने विश्वविधालय लौट रहे हैं।
हमरे गाँव में ट्रेन से आने – जाने का सुविधा नहीं है इसलिए हम 12 किलोमीटर दुर पुपरी स्टेशन पहुँचते हैं वहाँ पहुँचने के बाद हमरे मित्र नीरज जी हमरा इंतजार दु घंटे से कर रहे थे जब हम स्टेशन पहुँचे तो नीरज जी मजाकिये अंदाज में कहते हैं हम हींया पर दो घंटा से बइठल हैं ।
आप आ ही नहीं रहे हैं लगता है भौजी आपको छोड़ नहीं रही थी, हम उत्तर देते हुए बोल पड़ते हैं धत मर्दे अभी ब्याहो नहीं हुआ है भौजी कहाँ से आएगी वो ठहाका मारकर हँसने लगते हैं।
रेल के अधिकारी तब तक ट्रेन का अनाउंसमेंट करते हैं “यात्री गण कृपया ध्यान दें दरभंगा से चलकर सभी छोटे – बड़े स्टेशनों पर रूकते हुए पाटलिपुत्र तक जाने वाली गाड़ी कुछ ही देर में जनकपुर रोड पहुँचने वाली है”।
तब तक में हमरा दुनु का ट्रेन भी “छुक – छुक – छुक पों – पों – पों” करती हुई पुपरी स्टेशन पर आ पहुँची हम दोनों मित्र फटाटफ चढे़ अंदर घुसे पूरा सीट एकदमे खाली लगता ही नहीं था कि ट्रेन में बैठल हैं, वहीं सीट पर बैठते ही हमरा पडो़सी गाँव का लड़का अपने पापा के साथ आ पहुँचा और बैठ गया ।
सीट पर ऊ लड़का हमको पहचानता था पहीले से हम दोनों की पहली मुलाकात हुई नाम था उस लड़का का “कृतेश” अमनपुर का रहने वाला था अपने पिताजी का इलाज करवाने पटना जा रहा था।
फिर हमलोगों की बात चीत शुरू हुई इतने में पुपरी स्टेशन से ट्रेन खुली धीमी गति से चलते रही वहीं हमलोगों के सीट पर ही दो लड़की भी बैठी थी एकदम खूबसूरत मानो की परी थी।
थोड़ी देर बाद मुझे 2019 की बात याद आई उस समय हम “चेन्नई से दरभंगा” की यात्रा पर थे और उसमें भी दो खूबसूरत लड़की के साथ बातचीत हँसी मजाक करते हुए यात्रा सुखद रही थी।
ठीक पाँच सालों बाद ये बात दुहरा गई हम और हमारे मित्र आपस में बातें कर रहे थे वो दोनों लड़की अपनी सगी बहन थी दोनों हमलोगों की बात एकदम गौर से सुन रही थी सीतामढी़ पहुँचने तक हमलोग भी सभी के साथ घुल मिल गए बहुत सारी बातें हुई पूरे रास्ते में पढा़ई – लिखाई से लेकर नौकरी गर्लफ्रेंड तक पर चर्चा हुई।
सबो ने हमसे पूछा आप क्या करते हैं मैंने मुस्कुराते हुए जबाव दिया “पत्रकारिता” करता हूँ उसने मेरा नाम पुछा मैनें अपना नाम भी बताया उसके बाद हमने उन दोनों बहनों का नाम पुछा “एक का नाम श्रुती दूसरे का प्रज्ञा” हमने मुस्कुरा कर कहाँ श्रुती मेरी एक दोस्त भी है जो दरभंगा की है अगल – बगल अंटी – अंकल जी बैठे थे और हमलोग जैसे एक – दूसरे को पहले से जानते हो उस तरीके से बात कर रहे थे ।
खुब हँसी मजाक चल रहा था, एक बात याद आई “हमसफर” पुस्तक की जिसके लेखक हमारे मित्र “चित्रांश श्रीवास्तव” हैं उसमें एक “कायनात” नाम की लड़की को “राजीव” नाम के लड़के से प्यार हो जाता है यह प्यार भी ट्रेन यात्रा के दौरान ही होती है और अंतिम में दोनों “प्रेम विवाह” के बंधन में बंध जाते हैं। ऐसे ही ख्यालात मेरे मन में भी उठने लगा जैसे तैसे करके फिर अपने आप को संभाला और साधारण तरीके से बातचीत करता रहा।
श्रुती ने हमसे पुछा आप की कोई गर्लफ्रेंड है मैनें मुस्कुरा कर कहाँ नहीं, उसने कहाँ क्यूँ मैनें कहाँ कभी इस ओर ध्यान ही नहीं गया उसने हमसे कहाँ कभी नहीं बनी कोई आपकी गर्लफ्रेंड हमने कहाँ पहले एक थी फिर भैया को पता चला तो हम दूर हो गए पढ़ाई – लिखाई के कारण।
पिछे से कृतेश ने चुटकी लेते हुए कहाँ आगे बन जाएगी कोई तो , हमने कहाँ देखा जाएगा।
कृतेश हमसे कहाँ आप लवमैरिज शादी करेंगे मुझे लग रहा है अच्छा इ बताईये भैया दहेजो लेंगे का हम उत्तर देते हुए नहीं भाई बचपने से हम कहते आ रहे हैं कि दहेज हम नहीं लेंगे वैसे भी हमरे तीन दीदी और दो भैया का शादी बिना दहेज का हुआ है हमरे घर में दहेज प्रथा पूरी तरह से बंद है जैसे बिहार में शराब अच्छा – अच्छा तब तो बहुत सही है ऐसा होना भी चाहिए।
थोड़ी देर के बाद गाड़ी मुजफ्फरपुर स्टेशन पर आ रूकती है कृतेश, श्रुती, प्रज्ञा और हम नीचे उतड़ते हैं गाड़ी है भाई बइठल – बइठल पूरा हाथ – पैर जाम हो गेलो तनी बाहर में खड़ा होके सीधा करे दा, सभी लोग ट्रेन से उतरकर छोला – मुरही खाते हैं।
पिछे से श्रुती ने कहाँ एकदमें बेकार है 20 गो रूपयो ले लिया खाने में मजो नहीं आया, थोड़ी देर रूककर प्रज्ञा सलाह देती है इससे अच्छा तो चीप्स, कुरकुरे खा लेते तुरंत वो भी आ गया। दोनों बहन नानपुर से ही थी और एकदम मीठी – मीठी और सुंदर मैथिली भी खुब बोल रही थी हम मन ही मन प्रसन्न हो गए।
वाह मैथिली तो बहुत अच्छी बोलती है , वरना आजकल के जमाने में तो बाहर पढ़ने वाली लड़कियाँ अक्सर गाँव में आती है तो दो – चार लाईन “अंग्रेजी” ही झारती है जैसे इसके अलावा और किसी को आता ही नहीं हो वैसे ही।
इसी तरह बहुत सारी बातें हुई तब तक हमलोग पाटलिपुत्र पहुँच गये स्टेशन से उतरने के बाद सबों ने अपना – अपना ऑटोपकड़ा और अपने रास्ते चल दिए ये ट्रेन यात्रा भी बेहद खूबसूरत सुखद भरा रहा।✍️
आशीष रंजन
पत्रकारिता छात्र मगध विश्वविधालय
बोधगया, गया (बिहार)