” निज भाषा उन्नत अहै सब भाषा को मूल “

“निज भाषा उन्नत अहै सब भाषा को मूल “
यानी अपनी भाषा से ही हम वास्तविक उन्नति कर सकते हैं। निज मतलब अपनी स्वयं की भाषा।
मातृभाषा ,राजभाषा, राष्ट्रभाषा ही असली भाषा है जो राष्ट्र का और नागरिकों का सही अर्थों में उच्चकोटि का विकास कर सकती है। भारत की राष्ट्रीय भाषा, जनसंपर्क भाषा, राजकीय भाषा हिंदी है।

परंतु खेद है कि हिंदी आजादी के 77 वर्ष बाद भी राजनीतिज्ञों की वोट की राजनीति के कारण आज तक राष्ट्रीय भाषा नहीं बन सकी।

हिंदी भाषा ने ही अतीत में हमें स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी । यह जन जागरण की सशक्त भाषा थी और है। इसलिए हमें हिंदी के प्र चार , प्रसार ,विकास, और उसके दायरे को बढ़ाते हुए न केवल भारत में बल्कि अन्य देशों में यहां तक की पूरे विश्व में इसको फैलाने का काम करना चाहिए।

अंग्रेजों ने अपनी भाषा अंग्रेजी का प्रचार व प्रसार करके ही अपने आप को उन्नतिशील व सर्वश्रेष्ठ स्थान पर रखा । आज हम न केवल अंग्रेजी भाषा के गुलाम हैं बल्कि जाने अनजाने में उनकी संस्कृति के वाहक भी हैं जिसका भारतीय संस्कृति से ताल मेल है और न ही सच्चे अर्थों में मानव विकास के लिए ,उनके स्वास्थ्य के लिए ,उनके मानसिक विकास के लिए ठीक है।

अतः हम सभी भारतवासियों को हिंदी दिवस पर यह प्रण लेना चाहिए कि हमें हिंदी के प्रचार ,प्रसार, मान _सम्मान को सर्वोपरि रखते हुए हर दिशा में काम करना है। मेरा प्रण है कि मुझे “हिंद प्रेम “और “हिंदी प्रेम” में मरना जीना है।

है चाह यही।
बस
यह जीवन मेरा
हिंद प्रेम में ।
हिंदी में गीत गाते गाते बीते।

है चाह यही।
बस
यह जीवन मेरा
वंदे मातरम। वंदे मातरम।
जैसे देश हित में
नित नए-नए गीत बनाते-बनाते बीते।

है चाह यही।
बस
यह जीवन मेरा
ओज भरी हुंकारो से
वीरों ,सैनिकों में साहस, जोश भरते भरते बीते।

है चाह यही।
बस
यह जीवन मेरा
लेखनी से नित अंधकार मिटा कर
देशभक्ति के गीत लिखते लिखते बीते ।

है चाह यही।
बस।
यह जीवन मेरा
रंग मस्ती का
लहू बनकर
रग रग में देशभक्ति
और कुछ विशेष कर जाने का दृढ़ संकल्प निभाते निभाते बीते।

है चाह यही।
बस
यह जीवन मेरा
एक हाथ में तिरंगा
दूजे में मशाल
युवाओं में देश प्रेम की लौ ।
जलाते जलाते बीते।

है चाह यही ।
बस
ये जीवन मेरा।
विश्व पटल पर ।
स्वर्णिम अक्षर में ।
“जय हिंद जय हिंदी”
का घोष करते करते
बीते।

है चाह यही ।
बस
ये जीवन मेरा ।
हिंदी और हिंद का यश गान गाते करते करते गुजरे।_2

चीन ,जापान ,कोरिया आदि अपनी भाषा से विश्व में उच्च स्थान बना पाए हैं । आज चीन अमेरिका जैसी महाशक्ति को टक्कर देता है। नए नए आविष्कार करने हैं या अपनी धरोहर को आगे बड़ाना है। गौरवमयी इतिहास को पुनः स्थापित करना है तो अपनी भाषा में ( हिंदी भाषा,स्थानीय भाषाओं) सोचना, समझना , लिखना और कार्यान्वित करना बहुत जरूरी है।

ऐसा करने से मौलिकता पैदा होती है। और हम अपने अच्छे पारंपरिक मूल्यों को भी विस्मृत नहीं करते।फलस्वरूप हम अपना अलग स्थान व पहचान बना पाते हैं।बहलावे,फुसलावे,दिखावे में नही आते न ही दिमाग पर ज्यादा दबाव पड़ने देते। हम अपने तरीके से जीवन यापन तो करते ही हैं साथ ही अन्य महाशक्तियों का मुकाबला भी जमकर कर सकते हैं ।

खुद को सुरक्षित रख सकते हैं। सिर्फ हमें जरूरत है हीन भावना को निकालने की कि हमें अंग्रेजी, जर्मनी , फ्रेंच या अन्य तथाकथित कुछ कहे जाने वाले लोगों की भाषा नहीं आती है। उनकी भाषा सीखने में कोई बुराई नहीं है परंतु हमें अपनी ही भाषा का हर जगह पर ज्यादा से ज्यादा उपयोग करना चाहिए। उनके शब्दों को अपनी भाषा हिंदी में समाहित करते हुए हिंदी भाषा का दायरा बड़ा देना चाहिए ।

इस तरह से हम उनके सामने एक बड़ी लकीर खींच देंगे और तथाकथित उच्च कहे जाने वाले देशो की भाषा ,संस्कृति ,सोच के सामने हम अपनी विकसित संस्कृति ,भाषा, सोच को स्थापित कर पाएंगे। इस विषय में मैं कुछ बातें अपनी इस कविता के माध्यम से कहना चाहूंगी।

प्यारी हिंदी

हमारे होठों पर प्यारी हिंदी।
दिमाग में हिंदी
सोच में हिंदी
घर में हिंदी
कार्यालय में हिंदी
कागज पर हिंदी।
संगडक पर हिंदी
मोबाइल में प्यारी हिंदी ।

कहने और समझने की भाषा हिंदी।
मान सम्मान और आत्म सम्मान दिलाती हिंदी।
पहचान हमारी हिंदी
मधुर स्मृतियों को स्मृति चिन्ह बनाती प्यारी हिंदी।

हिंदी हिंद की बिंदी
तिरंगे से सजी
जय हिंद के घोष से गूंजी हिंदी।
प्रकृति पूजा से बांसुरी बजा ती हिंदी ।
विभिन्न बोलियों,भाषाओं, संस्कृतियो और सभ्यताओं को संजोती प्यारी हिंदी।

शस्त्र ,शास्त्र क्रांति में बिफरी
देशभक्ति की मिसाल बनी थी हिंदी
स्वतंत्रता आंदोलन की जान थी हिंदी।
आज भी आजादी को गढ़ती हिंदी।
राष्ट्रीयता की भावना से लिपटी प्यारी हिंदी।

देश को जोड़ती हिंदी
देश की हर भूभाग की स्थानीय भाषाओं की बनी कड़ी हिंदी।
चाची,ताई ,बुआ, भतीजी, मौसी,भांजी,बनी।

मघई, मैथिली ,भोजपुरी, बिहारी, अवधी , ब्रज, हरियाणवी, गुजराती, मराठी , कन्नड़ , तेलुगू, तमिल , मलयाली, आसामी ।
तो दादी, नानी बनी हमारी प्यारी हिंदी।

रंग बिरंगी पोशाकों से सजी
प्यारे-प्यारे सुहाने सपनों से गुंथी।
हर सुर ताल में बजती गाजे ,बाजे, हर साज पर थिरकती हिंदी
जिंदगी की थकान कम करती
दिमाग का तनाव कम करती हिंदी।

हिंद वासियोँ की जिंदगी सहज सरल और मग्न बनाती प्यारी हिंदी।

ज्ञान विज्ञान तकनीक में उभरी हिंदी
चैट.जी.पी.टी,कंप्यूटर, ए.आई रोबोट बोले हिंदी।
मून_ मिशन पर प्रज्ञान रोवर से चांद पर पहुंची हिंदी।
विश्व में आदर भाव दिलाती हिंदी।
अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनने के लिए खुद में अनंत संभावनाएं समेटे हमारी प्यारी हिंदी।

और आशान्वित होते हुए हिंदी के पंख फैलने के सपने मेरी आंखों में तैर रहे हैं

उड़ी रे उड़ी हिंदी

देखो ।
उड़ी रे उड़ी हिंदी ।
उत्तर भारत से राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार ,मुंबई से उड़ते उड़ते पहुंची दक्षिण भारत के कर्नाटक ,तेलंगाना और ठहरी जाकर विशाखापट्टनम।

देखो ।
उड़ी रे उड़ी हिंदी ।
भारत, भूटान ,नेपाल बांग्लादेश, चीन ,
रशिया ,जापान से
उड़ती उड़ती पहुंची ,कंबोडिया, और जाकर ठहरी वियतनाम।

देखो।
उड़ी रे उड़ी हिंदी। अफगानिस्तान ,ईरान, इराक, ओमान ,कतर, कुवैत से उड़ती उड़ती
जाकर ठहरी दुबई
और सऊदी अरब।

देखो ।
उड़ी रे उड़ी हिंदी।
फ्रांस ,इटली ,ग्रीस, डेनमार्क ,नीदरलैंड,जर्मनी से उड़ती उड़ती
जाकर ठहरी स्पेन
और स्वीडन।

देखो ।
उड़ी रे उड़ी हिंदी। नाइजीरिया, अल्जीरिया, घाना,डीआर कांगो से
उड़ती उड़ती
जाकर ठहरी तंजानिया
और मॉरीशस।

देखो।
उड़ी रे उड़ी हिंदी।
कोयल की तरह कूकती
विभिन्न संस्कृतियों के पर लगाए
जाकर ठहरी पूरे ग्लोब पर
“विश्व कुटुम्बकम” बन
पूरे ग्लोब पर जगनुओं की तरह चमक रही हिंदी।

देखो ।
उड़ी रे उड़ी हिंदी। 2

अगर हमने ऐसा किया तो मुझे विश्वास ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि हम इस असंभव कार्य को संभव करके दिखा सकते हैं और विश्व में अपने देश को गौरवमयि बनाने के साथ साथ हिंदी भाषा को संसार में अग्रणी भाषा का स्थान दिलवा सकते हैं।

Dr. Suman Dharamvir

Dr. Suman Dharamvir

यह भी पढ़ें :-

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *