समझदारी | Laghu Katha Samajhdari
आज फिर राजीव और सुमन के कमरे से एक दूसरे पर चीखने-चिल्लाने की आवाजें से आ रही थी। सप्ताह में एक बार तो यह होता ही था। दो दिन बाद फिर से वे एक हो जाते थे। मुझे इसकी आदत थी।
मैं दोनों मियां-बीबी के बीच में बोलना उचित नहीं समझती थी। आज भी मैंने उन दोनों को नजरअंदाज करके… घर की साफ-सफाई का अपना काम जारी रखा। लेकिन राजीव इतनी चीख के बोल रहा था कि उसके कमरे से मुझे सारी आवाजें साफ-साफ सुनाई दे रही थी। आज राजीव ने अति कर दी थी। राजीव मुझे पुकारते हुए कह रहा था-
“मम्मी जी, इधर आओ और अपनी बहू को समझा लो। मैं इसकी रोज-रोज की चिक चिक से दुखी हो गया हूँ। 2 मिनट भी घर में चैन से नहीं बैठ सकता।
खाते-पीते, सोते-जगते इस औरत ने मेरा दिमाग खराब कर रखा है। इसकी मां ने इसे कुछ भी सिखाकर नहीं भेजा। जाहिल, गंवार है बिल्कुल। पति से कैसे बात की जाती है.. इस बात तक की भी तमीज नहीं है इसको?
बस बहसबाजी ही करनी है हमेशा। जी में आ रहा है कि इसे हमेशा के लिए इसके मायके ही छोड़ आऊँ। न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी… यह वहां चैन से रहे और मैं यहां।”
यह सुनकर सुमन रोने लगी। उसके रोने की आवाज सुनकर न चाहते हुए भी मुझे उनके कमरे में जाना पड़ा। मैंने अपने बेटे राजीव को डांट लगाते हुए कहा-
“क्या बक रहा है? बकवास बंद कर अपनी? तुझे शर्म आनी चाहिए ऐसी बातें करते हुए। खबरदार जो मायके छोड़ने की बात की..पत्नी है वह तेरी। शादी को 3 साल हो गए, लेकिन तुम दोनों की लड़ाई बिल्कुल टॉम एंड जेरी जैसी है। एक दूसरे को बर्दाश्त भी नहीं कर सकते और एक दूसरे के बिना रह भी नहीं सकते।
सोचा यही था कि तुम लोगों के बीच में बोलकर, मैं क्यों अपना दिमाग खराब करूँ? मुझे पता है कि आज अभी तुम झगड़ रहे हो और एक दो दिन बाद एक साथ बैठकर हंसी-ठिठोली करोगे। तुम दोनों की लड़ाई में मैं पागल बन जाऊंगी, इसलिए मेरा चुप रहना ही ठीक है।
आपस में ही अपना मसला सुलझाओ। मुझे बीच में मत घसीटो। अपने झगड़े में मुझे बीच में मत घसीटा करो। इससे मेरा दिमाग खराब होता है। कभी सोचा है कि जब आपस में प्यार करते हो तो मुझे क्यों नहीं बुलाते तब?
तब क्यों नहीं कहते… मम्मी आओ, हम प्यार कर रहे हैं, देख लो… और अब जबकि झगड़ रहे हो तो मेरी याद आ रही है। तुम दोनों पति-पत्नी हो। पूरी जिंदगी एक दूसरे के साथ रहना है। सुमन का घर वह नहीं बल्कि यह है।
इस तरह बात बिगाड़ने से क्या फायदा? खुद आपस में बात करो और आपसी मसला सुलझाओ। एक दूसरे की बातों को बर्दाश्त करना, सुनना, समझना और एक दूसरे की बातों का मान रखना हमें आना चाहिए।
तभी आगे की जिंदगी बेहतर कटेगी… वरना इतनी लंबी जिंदगी कैसी कटेगी? कभी सोचा है… जरा दिमाग से दोनों सोचा करो और जल्द से जल्द समस्या सुलझाने की कोशिश किया करो।
इसी में तुम दोनों की भलाई है। यही मेरी तुम दोनों को सलाह है। तुमने कभी अपने पिता के गुस्सा करने के दौरान, मुझे जबान लड़ाते हुए देखा है? या मेरे गुस्सा होने पर अपने पिता को बहसबाजी करते देखा है?
तुम दोनों ने नोटिस किया होगा कि जब एक को गुस्सा आता है तो दूसरा शांत रहता है। इस तरह गुस्से से जब मन की सारी भड़ास निकल जाती है तो गुस्सा करने वाला भी शांत हो जाता है।
जब वह शांत हो जाए, तब सही समय देखकर अपने मन की बात, सोचने का नजरिया दूसरे साथी को बताया जा सकता है। अगर हम भी कुछ गुस्सा करने लगे तो बात और भी ज्यादा बिगड़ सकती है। छोटी-छोटी बातों पर लड़ने की बजाय चुप रहने में या दूसरे के हिसाब से खुद को ढालने में ज्यादा समझदारी है क्योंकि कहा भी गया है कि एक चुप सो को हराये।”
राजीव और सुमन चुप होकर मेरी नसीहत को सुन रहे थे। मैंने अपनी बात खत्म की और उनके कमरों से… उनको उनके हाल पर छोड़कर बाहर आ गई। कुछ देर बाद मुझे राजीव और सुमन के कमरे से खिलखिलाकर हंसने की आवाज़ सुनाई दी।
मुझे बड़ा सुकून मिला। ऐसा लगा- जैसे उन्होंने मेरी सलाह पर अमल करके… सब कुछ जल्द से जल्द ठीक कर लिया हो। आज मेरा उन पर अपना गुस्सा करना व नसीहत देना सफल हो गया था। मुझे लग रहा था… काश यह कदम मैं पहले उठा लेती तो इनका हर रोज इस तरह झगड़ना कब का बंद हो चुका होता?
शिक्षा:-
इस कहानी में, राजीव और सुमन के बीच का झगड़ा एक आम समस्या है जो कई विवाहित जोड़ों के साथ होती है। लेकिन इस कहानी में, मां की समझदारी और नसीहत ने उन्हें अपने रिश्ते को मजबूत बनाने में मदद की।
इस कहानी से हमें यह सीखने को मिलता है कि:
- समझदारी और शांति से हम अपने रिश्तों को मजबूत बना सकते हैं।
- झगड़े को बढ़ने से रोकने के लिए, हमें शांति से बात करनी चाहिए और एक दूसरे की बात सुननी चाहिए।
- मां की नसीहत और समझदारी अक्सर हमें अपने रिश्तों को मजबूत बनाने में मदद कर सकती है।
लेखक:- डॉ० भूपेंद्र सिंह, अमरोहा
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