Sanatan Dharma

धर्म क्या है ?

आस्था है ब्रह्मांड का अस्तित्व है धर्म जन्म के जीवन की दिशा दृष्टिकोण निर्धारण करने का मार्ग है या जन्म जीवन के सत्यार्थ बोध का सत्य है। धर्म ईश्वरीय सत्य का विज्ञान है या आचरण एव संस्कार निर्माण का पथ सिद्धांत है। सर्व प्रथम यह जानना आवश्यक है कि धर्म वास्तव में है क्या है…

चातुर्मास

चातुर्मास अस्तित्व का एक सूक्ष्म विराम

चातुर्मास — केवल पंचांग के चार मास नहीं, बल्कि मानवीय चेतना के गहरे आरोहण का एक सनातन सूत्र है। यह मात्र एक धार्मिक अवधि नहीं, अपितु जीवन के विराट चक्र में आत्म-अन्वेषण और पुनर्संयोजन का एक दार्शनिक पड़ाव है। आषाढ़ की देवशयनी एकादशी से कार्तिक की प्रबोधिनी एकादशी तक फैला यह काल, समय के प्रवाह…

Beti or pita par kavita

पितृ दिवस: एक दार्शनिक चिंतन

पिता, यह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि एक ऐसी सत्ता है जो हमारे जीवन के ताने-बाने को बुनती है। मातृ दिवस पर जितना भावुक उद्रेक और काव्यमय अभिव्यक्ति होती है, पितृ दिवस पर उतनी सहजता से नहीं दिखती। शायद इसलिए कि पिता का प्रेम अक्सर मौन, अदृश्य और कठोरता की चादर ओढ़े होता है। यह…

Facebook par Kavita

फेसबुक या फूहड़बुक?: डिजिटल अश्लीलता का बढ़ता आतंक और समाज की गिरती संवेदनशीलता

जब सोशल मीडिया हमारे जीवन में आया, तो उम्मीद थी कि यह विचारों को जोड़ने, संवाद को मज़बूत करने और जन-जागरूकता फैलाने का एक सशक्त माध्यम बनेगा। लेकिन आज, 2025 में, विशेषकर फेसबुक जैसे मंच पर जिस तरह से अश्लीलता और फूहड़ता का आतंक फैलता जा रहा है, वह न केवल चिंताजनक है, बल्कि सभ्यता…

Sunita Williams

सुनीता विलियम्स के बहाने

पहचान आज उस अख़बार की हेडलाइन दूसरे अखबारों से एकदम अलग थी—“पहचानिए सुनीता विलियम्स को!”साथ में एक फोटो था, जिसमें पुरुष, महिलाएं और बच्चों की भीड़ थी, जो एक हवाई जहाज़ की ओर बढ़ रही थी। समाचार में लिखा था, “भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स धरती पर लौट आईं। हर ओर गर्व और खुशी की…

सस्ता इंटरनेट

सस्ता इंटरनेट देश की लुटिया डूबा रहा है

पिछले कुछ महीनों से मेरे लेखन में कमी आयी हैं.. यह कमी बहुत अधिक है.. हालिका ऐसा नही है कि मेरे पास समय की कोई कमी हो.. अपने काम पर पूरा समय देने के उपरांत भी मेरे पास समय होता है कि मैं लिख सकू.. मगर ऐसा नही हो रहा है। मगर ऐसा क्यो हो…

बिखर रहे चूल्हे सभी

बिखर रहे चूल्हे सभी

बिखर रहे चूल्हे सभी, सिमटे आँगन रोज।नई सदी ये कर रही, जाने कैसी खोज॥ पिछले कुछ समय में पारिवारिक ढांचे में काफ़ी बदलाव हुआ है। मगर परिवारों की नींव का इस तरह से कमजोर पड़ना कई चीजों पर निर्भर हो गया है। अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी होना ही रिश्ते टूटने की प्रमुख वज़ह है। जब परिवारों में…

शुद्ध चिंतन आत्म मंथन

शुद्ध चिंतन आत्म मंथन

हम यह किस दौर की तरफ जा रहे हैं? अगर पहले के समय की बात करें तो हमारे पूर्वजों में हमारी माताएं अपने पति को ‘ए जी ‘ ‘ओ जी’  ‘सुनिए जी ‘ कहती थी। उसे भी आजकल की थर्ड क्लास रील ने इतना गंदा मतलब बना दिया कि इसका मतलब होता है ए गधे/…

साहित्य और समाज

साहित्य और समाज

साहित्य को समाज का दर्पण माना गया है। साहित्य के माध्यम से ही हम समाज के स्तर का आकलन कर सकते हैं। एक साहित्यकार अपने आस-पास के परिवेश में जो कुछ भी देखता या महसूस करता है, वह अपनी लेखनी के माध्यम से अपने मन के भाव अभिव्यक्त करता है। चिरकाल से लेकर आज तक…

अतुकांत और छंद विहीन कविता

अतुकांत और छंद विहीन कविता

अतुकांत और छंद विहीन कविता एक ऐसी कविता होती है जिसमें कोई निश्चित तुक या छंद नहीं होता है। यह कविता अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र होती है और इसमें कोई निश्चित रूप या पैटर्न नहीं होता है। अतुकांत कविता की विशेषताएं: छंद विहीन कविता के उदाहरण: अतुकांत कविता के…