Sunita Williams

सुनीता विलियम्स के बहाने

पहचान आज उस अख़बार की हेडलाइन दूसरे अखबारों से एकदम अलग थी—“पहचानिए सुनीता विलियम्स को!”साथ में एक फोटो था, जिसमें पुरुष, महिलाएं और बच्चों की भीड़ थी, जो एक हवाई जहाज़ की ओर बढ़ रही थी। समाचार में लिखा था, “भारतीय मूल की सुनीता विलियम्स धरती पर लौट आईं। हर ओर गर्व और खुशी की…

सस्ता इंटरनेट

सस्ता इंटरनेट देश की लुटिया डूबा रहा है

पिछले कुछ महीनों से मेरे लेखन में कमी आयी हैं.. यह कमी बहुत अधिक है.. हालिका ऐसा नही है कि मेरे पास समय की कोई कमी हो.. अपने काम पर पूरा समय देने के उपरांत भी मेरे पास समय होता है कि मैं लिख सकू.. मगर ऐसा नही हो रहा है। मगर ऐसा क्यो हो…

बिखर रहे चूल्हे सभी

बिखर रहे चूल्हे सभी

बिखर रहे चूल्हे सभी, सिमटे आँगन रोज।नई सदी ये कर रही, जाने कैसी खोज॥ पिछले कुछ समय में पारिवारिक ढांचे में काफ़ी बदलाव हुआ है। मगर परिवारों की नींव का इस तरह से कमजोर पड़ना कई चीजों पर निर्भर हो गया है। अत्यधिक महत्त्वाकांक्षी होना ही रिश्ते टूटने की प्रमुख वज़ह है। जब परिवारों में…

शुद्ध चिंतन आत्म मंथन

शुद्ध चिंतन आत्म मंथन

हम यह किस दौर की तरफ जा रहे हैं? अगर पहले के समय की बात करें तो हमारे पूर्वजों में हमारी माताएं अपने पति को ‘ए जी ‘ ‘ओ जी’  ‘सुनिए जी ‘ कहती थी। उसे भी आजकल की थर्ड क्लास रील ने इतना गंदा मतलब बना दिया कि इसका मतलब होता है ए गधे/…

साहित्य और समाज

साहित्य और समाज

साहित्य को समाज का दर्पण माना गया है। साहित्य के माध्यम से ही हम समाज के स्तर का आकलन कर सकते हैं। एक साहित्यकार अपने आस-पास के परिवेश में जो कुछ भी देखता या महसूस करता है, वह अपनी लेखनी के माध्यम से अपने मन के भाव अभिव्यक्त करता है। चिरकाल से लेकर आज तक…

अतुकांत और छंद विहीन कविता

अतुकांत और छंद विहीन कविता

अतुकांत और छंद विहीन कविता एक ऐसी कविता होती है जिसमें कोई निश्चित तुक या छंद नहीं होता है। यह कविता अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र होती है और इसमें कोई निश्चित रूप या पैटर्न नहीं होता है। अतुकांत कविता की विशेषताएं: छंद विहीन कविता के उदाहरण: अतुकांत कविता के…

राष्ट्रभाषा बिना राष्ट्र गूंगा होता है!

राष्ट्रभाषा बिना राष्ट्र गूंगा होता है!

हिंदी की अनदेखी को रोकने के लिए 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिंदी दिवस बड़े ही हर्षोल्लास ढंग से मनाया जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के दो साल बाद ही 14 सितम्बर, 1949 ईसवी को संविधान सभा द्वारा आधिकारिक भाषा के रूप में एक ध्वनिमत से इसे पास किया और 26 जनवरी, 1950 ईसवी को देश के…

हिन्दी: कब बनेगी हमारी राष्ट्रभाषा?

हिन्दी: कब बनेगी हमारी राष्ट्रभाषा?

भारत एक विविधताओं का देश है और यही इसकी सबसे बड़ी पहचान है। यहां अनेक भाषाएं और बोलियां बोली, लिखी और पढ़ी जाती हैं। ऐसे में किसी भी एक भाषा को राष्‍ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। भारत की एक बड़ी आबादी हिंदी भाषी है मगर बड़ी संख्‍या में लोग हिंदी न बोलते हैं…

बिन पेंदी का लोटा | Bin Pendi ka Lota

बिन पेंदी का लोटा | Bin Pendi ka Lota

वर्तमान समय में देखा जाए तो हिंदू समाज बिन पेंदी के लोटा की भांति हो गया है। जिसने जैसा चाहा उसे वही मोड़ दे रहा है। उसकी श्रद्धा जैसे किसी एक जगह स्थिर नहीं रहती है। वह कभी राम जी को मानता है , तो कभी कृष्ण को तो , कभी दरगाह मजार पर चादर…

Hindi ki Sthiti

हिंदी बोलते समय इतनी शर्म क्यों ?

भारत ने स्थानीय भाषाओं में निवेश नहीं किया है, चाहे वह उच्च गुणवत्ता वाली स्कूली शिक्षा हो या कला और साहित्य में निवेश हो। यदि हम आज यह निवेश करते हैं, तो हमारी सभी भाषाएँ फल-फूलेंगी, साथ ही उन पर हमारा गर्व भी होगा। जब तक हम यह निवेश नहीं करेंगे, शिक्षित पीढ़ी अंग्रेजी बोलती…