नवरात्रि पर्व (चैत्र)
नवरात्रि व्रत का मूल उद्देश्य है इंद्रियों का संयम और आध्यात्मिक शक्ति का संचय। वस्तुत: नवरात्र अंत:शुद्धि का महापर्व है।आज वातावरण में चारों तरफ विचारों का प्रदूषण है।
ऐसी स्थिति में नवरात्र का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। अपने भीतर की ऊर्जा जगाना ही देवी उपासना का मुख्य प्रयोजन है। भुवाल माता की पूजा और नवरात्र मानसिक-शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक हैं। चैत्र की नवरात्रि के साथ रामजन्म एवं रामराज्य की स्थापना का इतिहास है।
इस कारण इस नवरात्र का महत्त्व सर्वाधिक है। सर्दी और गर्मी की ऋतुओं का मिलन काल आश्विन और चैत्र मास में जिन दिनों आता है वे नवरात्रि कहलाते हैं। उन दिनों शरीर, मन और प्रकृति के विभिन्न घटकों में विशेष रूप से उल्लास भरा रहता है।
वातावरण में विशिष्टता व्याप्त रहती है। नवरात्रि पर्व के दौरान भुवाल माता के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है ।शक्ति स्वरूपा देवी भुवाल को प्रसन्न करने के लिए साल में चार बार नवरात्रि पड़ती हैं जिनमें एक बार शारदीय और एक बार चैत्र नवरात्रि, इसके अलावा 2 बार गुप्त नवरात्रि के दौरान भक्त माता की आराधना करते हैं ।
नवरात्रि में माता की पूजा-अर्चना करने का विधान सदियों से चला आ रहा है ।नवरात्रि के समय प्रकृति में एक अलग ही विशिष्ट ऊर्जा होती है जिसको आत्मसात कर लेने पर व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है।
नवरात्रि पर्व का प्रयोजन भी यह है कि हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर अपने मन-मस्तिष्क को केंद्रित कर सकें।मेरे चिन्तन से मनोविज्ञान का एक तर्क यह भी हो सकता है कि कोई भी व्यक्ति एक शुद्ध भावना के साथ आस्था रखता है तो उस समय हमारी सोच सकारात्मक रहती है, जिसका प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है, जिससे हम अपने भीतर नई ऊर्जा महसूस करते हैं। इस समय प्रकृति अपना स्वरूप बदलती है।
वातावरण में एक अलग-सी आभा देखने को मिलती है। पतझड़ के बाद नवीन जीवन की शुरुआत, नई पत्तियों और हरियाली की शुरुआत होती है। चैत्र नवरात्र में वसंत होता है। प्रकृति की शोभा देखते ही बनती है। वनस्पतियां नवीन पल्लव धारण करती हैं। प्रकृति का उल्लास अपना प्रभाव समूचे वातावरण पर डालता है।
जीवधारियों के मन विशेष प्रकार की मादकता से भर जाते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से मनीषियों ने इन दिनों आत्मा के ऋतुमति होने का आलंकारिक संकेत किया है। उनके अनुसार, इन दिनों वह अपने प्रियतम परमात्मा से मिलने के लिए विशेष रूप से आतुर होती है।
संपूर्ण सृष्टि में एक नई ऊर्जा होती है। इस ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग करने के लिए हमें व्रतों का संयम-नियम आदि बहुत लाभ पहुंचाता है। नौ दिन का व्रत-उपवास प्राकृतिक उपचार के समतुल्य माना जा सकता है। इसमें प्रायश्चित के निष्कासन और पवित्रता की अवधारणा दोनों भाव हैं। नवरात्रि में कृषि-संस्कृति को भी सम्मान दिया गया है।
मान्यता है कि सृष्टि की शुरुआत में पहली फसल जौ ही थी। इसलिए इसे हम प्रकृति (मां शक्ति) को समर्पित करते हैं। इस तरह नवरात्रि पर्व का बहुत महत्व हैं । नवरात्रि पर्व पर हमारी ऋद्धि – सिद्धी वर्धमान हों , तन स्वस्थ मन स्वस्थ रहे , स्वस्थ सोच हरदम हो , आनन्द का सागर लहराए , ख़ुशियों का सरगम हो आदि – आदि यही मंगलकामना ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)
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