दार्शनिक शोध विधि : अस्तित्व की व्यवस्था
सर्वप्रथम तो हम ये जानना चाहेंगे कि दार्शनिक विधि क्या है ? यह जो विधि है ये एक दर्शन का अनुसंधान है, यह दर्शन-विवेचन की एक लिए इस्तेमाल की जाने वाली विधियों का अध्ययन है, तत्वमीमांसा की एक शाखा है, दार्शनिक विधि में प्रश्न करना, आलोचनात्मक बातचीत करना या चर्चा करना, तार्किक तर्क और व्यवस्थित प्रस्तुति शामिल है।
यह दर्शनशास्त्र या विधिशास्त्र की एक इकाई है, जो विधि की प्रकृति व स्वभाव और मानदण्डको की अन्य प्रणालियों, विशेषत: नीतिशास्त्र और राजनीतिक दर्शन के साथ कानून के संबंधों की अन्वीक्षा करती है, विशेष रूप से मानवीय मूल्यों, दृष्टिकोण, प्रथाओं और राजनीतिक समुदायों के संबंध को दर्शाती है।
दार्शनिकता के चार प्रकार विशेष है-तर्क, अस्तित्ववाद, विश्लेषणात्मक परम्परा और परिघटना विज्ञान। इसमें तर्क है जो एक सत्य है, जो कि तर्क और आलोचनात्मक सोच पर आधारित है। यह तर्कों का विश्लेषण और निर्माण करते है जो अर्द्व सत्य और धोखे से मुक्ति के मार्ग में कार्य करता है।
वह व्यक्ति जो प्रत्येक स्थान, जगह-जगह घूमकर और वहाँ की प्रत्येक वस्तुओं के विषय मे पर्याप्त ज्ञान या जानकारी रखता हो, उसे दार्शनिक या फिलॉस्फर कहते है। यह दार्शनिक किसी भी स्थान या विषय के विषय मे जानकारी प्राप्त करने के दृष्टिकोण अपनी चेतना, अपनी बुद्धि का उपयोग करता है।
इनका अनुसंधान अस्तित्व की समस्त चीजों को एक विशिष्ट चिन्तनशैली में ढालकर एक व्यवस्था प्रदान करता है। इसको करते समय शोधकर्ता आंतरिक अनुभव और बाह्य परिस्थितियों को गम्भीरतापूर्वक श्रवण, मनन तथा निदिध्यासन करने के पश्चात सामान्य निष्कर्षों तक पहुँचता है, हालांकि इसे ऐसा स्वीकार नही किया गया है।
अब हम दार्शनिक पद्धति के सम्बन्ध में देखें तो इस दार्शनिक पद्धति में प्रश्न करना, आलोचनात्मक चर्चा या तार्किक यपक्ति और व्यवस्थित प्रस्तुति समाहित है। इनमें अवधारणात्मक विश्लेषण, सामान्य बुद्धि और अंतर्ज्ञान पर निर्भरता, चिंतन प्रयोगों के उपयोग, साधारण भाषा का विश्लेषण, अनुभव का दर्शन और समीक्षात्मक प्रश्नोत्तरी भी शामिल है।
यह शोध दृष्टिकोण जो किसी दर्शन या विचारधारा की आलोचनात्मक परीक्षण करने का प्रयास भी करता है, ताकि अतिरिक्त अंतदृष्टि प्राप्त की जा सके। जिसे नई अवधारणाओं, सिद्धांतों य मानदंडों को स्थापित करने में लागू किया जा सके।
दार्शनिक विधि अपने सबसे सामान्य अर्थ में, दर्शन-विवेचन करने के लिए उपयोग की जाने वाली विधियों का अध्ययन करने वाली परीक्षण का क्षेत्र है, लेकिन यह शब्द स्वयं विधियों को भी संदर्भित कर सकती है।
क्यू आर एम ई ने पिछले कुछ वर्षों में शोधकर्ताओं (लेउथवेट और निंड 2016, वैगनर एट अल 2019) के द्वारा इस क्षेत्र में पद्धतिगत शिक्षण और सीखने के अभ्यास के अनेक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया है।
इस सन्दर्भ में, भले ही शोधकर्ता यह स्वीकार करते हों कि दर्शनशास्त्र क्यू आर एम ई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दर्शन की विधियां शोध करने, नये सिद्धांत बनाने और प्रतिस्पर्धा सिद्धांतो के मध्य चयन करने की प्रक्रियायें करती है। विधियों के विवरण के अलावा, दार्शनिक पद्धति तुलना और मूल्यांकन भी करती है।
भारतीय दर्शन में यह प्रत्येक दार्शनिक प्रणाली द्वारा चीजों को देखने के विशिष्ट तरीकों की भी दर्शाता है जिसमें पवित्र शास्त्रों और आधिकारिक ज्ञान की व्याख्या विशेष रूप से शाम है। भारतीय हिन्दु दर्शन में सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक मिसांसा और वेदांत की विधियां है।।

डॉ पल्लवी सिंह ‘अनुमेहा’
लेखिका एवं कवयित्री
बैतूल ( मप्र )
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