ढाई अक्षर प्रेम से बनेगा हिंसा मुक्त समाज
सूफी संत कबीर दास ने प्रेम को जानने वालों को पंडित कहा है। प्रेम प्रेम तो सभी कहते रहते हैं परंतु क्या हम प्रेम के अर्थ को समझते हैं । आखिर किस प्रेम की चर्चा कबीर कर रहे हैं जो कि प्रभु प्राप्ति का मार्ग भी है । प्रेम की नासमझी के ही कारण शारीरिक आकर्षण, मेल मिलाप को भी कह देते हैं ।
आखिर प्रेम इतना लोगों में बढ़ रहा है तो घृणा द्वेष नफरत तलाक क्यों बढ़ते जा रहे हैं? क्यों शादी विवाह के साथ ही तलाक की भी शुरुआत होने लगती है ? सच तो यह है कि हम जिसे प्रेम समझते हैं मात्र आकर्षण एवं वासना है।
प्रेम तो प्रभु मिलन का द्वार है। प्रेम में कोई चाहत नहीं होती है।
मै पन समाप्त हो जाता है। पारिवारिक विघटन का कारण देखा जाए तो व्यक्ति का अहंकार ही है। वह झुकना नहीं चाहता। जिससे आधुनिक मनुष्य जाति ही घुटन महसूस कर रही हैं। मनुष्य जाति को यदि बचाना है तो व्यक्ति व्यक्ति में प्रेम दया करुणा के भावों का विस्तार करना होगा। चंगेज खां ,हिटलर नेपोलियन अंगुलिमाल जैसे विशाल नरसंहार करने वाले लोगों का बचपन में मातृ प्रेम से विमुख होना पड़ा । वह प्रेम का अभाव ही नरसंहार का कारण बने।
सामान्य जीवन में भी जिनका मातृसुख बचपन में नहीं मिलता जो प्रेम में असफल होते हैं वे शराब सिगरेट जुएं आदि में जिंदगी स्वाहा कर देते हैं ।
अतः शराबी, जुआड़ी ,नशेड़ी व्यक्ति को आप प्रेम करके तो देखें प्रेम से संसार की सभी बुराइयां , अनाचार खत्म हो सकती हैं। कुत्ते बिल्ली भालू शेर जैसे जीवों पर अभी तक कई प्रयोग हुए जो की आश्चर्यजनक रूप से चौंकाने वाले थे। दरअसल कोई जानवर तब हमला करता है जब उसको आपसे कोई खतरा हो।
वह अपने बचाव के लिए दूसरों पर वार करते हैं। बिना खतरे के तो सर्प जैसे जहरीले जीव भी नहीं काटते परंतु मनुष्य एक ऐसा विचित्र जानवर है जो बिना खतरे के लोगों को सोते हुए खून की नदियां बहा देता है । ऐसे रक्त के प्यासे लोगों की कोई जाति नहीं होती।
बर्बरीक नामक संत ने तो पेड़ पौधों की प्रकृति भी प्रेम से बदल दी । उन्होंने गुलाब के पौधे से तो कांटे भी गायब कर दिए ।नागफनी जैसे कटीले वृक्ष की प्रकृति बदल दी। आखिर जब पेड़ पौधे प्रेम से बदले जा सकते हैं तो मनुष्य जाति क्यों नहीं बदल सकती । वास्तव में दुष्ट प्रवृत्ति के लोग घृणा के नहीं प्रेम के पात्र हैं ।
किसी का सुधार उपहास से नहीं उसको नए सिरे से सोचने एवं बदलने का मौका देने से होता है। हिंसा की अग्नि को प्रेम रूपी शीतल जल ही शांत कर सकता है । आज छोटे-छोटे बच्चे हिंसक वारदात कर रहे हैं। इसमें भी कहीं ना कहीं मातृत्व प्रेम का अभाव ही है । इसमें कहीं ना कहीं मातृत्व प्रेम का अभाव ही है।
अमेरिका, ब्रिटेन , कनाडा जैसे विकसित पाश्चात्य देशों में भी देखा जाए तो जब से पारिवारिक विघटन बढ़ा है स्त्री पुरुषों में स्वच्छंदता बढ़ी है। उतनी ही मात्रा में हिंसक वारदातें भी बढ़ीं हैं । स्वच्छंदतावाद को सबसे ज्यादा बच्चों को झेलना पड़ता है ।वह अंदर ही अंदर टूट जाता है।
माता-पिता की मौज मस्ती बच्चों के गले की फांस बन जाती है । जब उसे लगने लगता है कि हमारी कोई नहीं सुनता, सब स्वार्थी है ऐसी स्थिति में हथियार उठाने ही उनके लिए एक मात्र सहारा बचता है ।
अतः परिवार एवं समाज को विघटन से बचाए रखने के लिए प्रेम करुणा का विकास जीवन में करना पड़ेगा । थोड़ा ध्यान योग का भी सहारा लिया जा सकता है। जिससे सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होगी।

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )







