एक पत्र बीते हुए वर्ष के नाम
बीते हुए वर्ष
सादर प्रणाम
तुम्हे पत्र लिखने का कारण की, तुम आयें और चले भी गयें और हमे तुम्हारे आने और जाने का एहसास और आत्मनुभव नही हो पाया , तुम्हारा आना एसे ही था जैसे इस वर्ष का आना रहा और जाना भी उसी तरह रहा जैसे पिछले वर्ष का जाना रहा बस थोड़ा-बहुत अंतर रहा ।
तुम आए रहे थोड़े सुख देकर गये तो थोड़े दुख लेकिन मनुष्य के स्वभाव अनुसार हमें केवल तुम्हारे दिए दुख ही याद रहे , अमंगल थोड़ा-बहुत हुआ होगा लेकिन तुम मंगल भी बहुत कुछ कर गये कुछ क्षण तुमने एसे दिए की हमें उँचाई के शिखर पर विराजमान किया जो हम तुम्हारे दिए शिखर को सदैव याद रखेंगे।
कुछ पल एसे भी आए की तुमने हमे मिट्टी पर बिठा दिया यह समझा दिया की मिट्टी से जुड़कर रहना चाहिए..कुछ रिश्ते मजबूती से जूडते गये और कुछ काफी मजबूत होकर भी टूट गये इस जुड़ने और टूटने के बीच का सफर सदैव याद रहेगा ।
बीते हुए वर्ष तुम्हारा हम पर सब कुछ लूटाकर जाना याद रहेगा और याद रहेगा तुम्हारा जीवन से बगैर शिकायत किये गुजर जाना ।
बगैर शिकायत किये गुजर जाना..
हमें सिखाकर गये तुम की जीवन में जो बीत गया उस दौर पर शिकवा और शिकायत नही करनी चाहिए..
दुख की घड़ी हैं तो सुख की घड़ी भी होगी ..
काली अंधेरी रात हैं तो भोर की मंद-मंद चाँदनी भी जरूर बिखर जायेगी..
चौहान शुभांगी मगनसिंह
लातूर महाराष्ट्र
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