Essay on water crisis in India in Hindi
Essay on water crisis in India in Hindi

निबंध : भारत में जल संकट

( Water crisis in India : Essay in Hindi )

 

प्रस्तावना :-

भारत में जल उपलब्धता और उपयोग के स्तर पर विचार किया जाए तो भारत में वैश्विक ताजे जल स्त्रोत का मात्र 4% हिस्सा मौजूद है। जिसमें वैश्विक जनसंख्या के 18% हिस्से को जल उपलब्ध कराया जाता है।

केंद्रीय जल आयोग के अनुसार साल 2010 में देश में मौजूद कुल ताजे जल स्त्रोतों में से 78% हिस्सा सिंचाई के लिए उपयोग किया जा रहा था।

जबकि घरेलू उपयोग में इसका मात्र 6% हिस्सा प्रयोग में लाया जाता था। भारतीय कृषि क्षेत्र जल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है। यह आने वाले समय में भी बना रहेगा।

ऐसा लगता है कि जब तक इस क्षेत्र में जल की आपूर्ति और उपयोग के मामले में कुशलता नहीं लाई जाएगी स्थिति में सुधार की अपेक्षा नहीं की जा सकती।

हमारे देश में सरकारें जल संरक्षण तथा उसके दुरुपयोग को रोकने के लिए अभी तक कोई खास गंभीर प्रयास नहीं कर रही हैं। ऐसे में आने वाले कुछ वर्षों में भारत में जल संकट उत्पन्न हो सकता है।

जल स्तर की वर्तमान स्थिति

आज भी भारत के कुछ हिस्सों में जल संकट की स्थिति देखने को मिल जाती है। वर्तमान समय में जरूरत है कि देश में जल उपयोग के लिए सर्वोत्तम तरीके और तीव्रता से इस संकट से बाहर निकालने के तरीके पर विचार किया जाए।

भारत में भूमिगत जल प्रबंधन का कोई प्रभावी विनियमन मौजूद नहीं है। सिंचाई के लिए सस्ती अथवा निशुल्क विद्युत आपूर्ति जल के उपयोग के संबंध में अवस्था को जन्म दे दिया है।

इस नीति की वजह से कृषि को प्रदत बिजली सब्सिडी के कारण भारती राजकोष को प्रतिवर्ष ₹70 लाख करोड़ का बोझ उठाना पड़ता है। साथ ही भूजल स्तर में लगातार कमी आ रही है।

भारत के 256 जिलों के 1552 प्रखंडों जल के संकट अथवा अति अवशोषित स्थिति में पहुंच गए हैं। पंजाब जैसे क्षेत्रों में भूजल स्तर में प्रतिवर्ष 1 मीटर की कमी आ रही है।

धान और गन्ना जैसे जलघर फसलें भारत की कुल सिंचाई का लगभग 60% उपयोग करती हैं। अकेले पंजाब में आवश्यक रूप से 1 किलो चावल के उत्पादन में 5000 लीटर जल की खपत हो रही है।

जबकि महाराष्ट्र में 1 किलोग्राम चीनी के उत्पादन में आवश्यक रूप से 2300 लीटर जल की आवश्यकता होती है। पारंपरिक रूप से लगभग 100 साल पहले गन्ने की खेती के केंद्र पूर्वी उत्तर भारत और बिहार जैसे राज्य हुआ करते थे।

जहां पर्याप्त वर्षा होती थी और जल की प्रचुरता भी थी। नई प्रौद्योगिकी और वाणिज्यिक लाभ के चलते महाराष्ट्र जैसे क्षेत्रों में गन्ने का उत्पादन किया जाने लगा जबकि यहां पर अपेक्षाकृत कम वर्षा होती है। लेकिन यहां सघन वर्षा वाली खेती की जाने लगी है

शहरीकरण और जल संकट

शहरीकरण ने भी जल की समस्या को बढ़ावा दिया है। भारत में शहरीकरण भू जल संरक्षण तकनीक का उपयोग नहीं होता है। भूमिगत जल के माध्यम से ही जल की पूरी आपूर्ति करने का प्रयास होता है। एक तरफ शहरीकरण ने प्रकृति जल संरक्षण को बर्बाद किया। वहीं दूसरी तरफ नई तकनीक का विकास किया ही नही किया गया।

भारत में सीवेज सिस्टम पर भी ध्यान नहीं दिया जाता। अधिकांश सीवेज को प्राकृतिक जल स्त्रोतों से जोड़ दिया जाता है। जिसकी वजह से चुनौती बढ़ जाती है। सीवेज प्रणाली में उपस्थित जल का पुनर्चक्रण नहीं हो पाता है। वही इनकी वजह से प्राकृतिक जल संसाधनों और जल स्त्रोत भी प्रदूषण का शिकार हो जाते है।

 जल संरक्षण के लिए संभावित प्रयास

  • पंजाब में खरीफ मौसम में मक्का या सोयाबीन जैसे अलप जल समर्थित फसलों का उत्पादन करके कृषकों को मूल्य समर्थन देकर प्रोत्साहित किया जा सकता है। यह बिजली सब्सिडी में बचत करेगा साथ ही भूजल स्तर भी बढ़ाने में मदद मिलेगी।
  • पंजाब-हरियाणा जैसे क्षेत्रों में धान की खेती में  कम से कम एक मिलीयन हेयर की कमी लाकर, बिहार व पूर्वी भारत की तरफ हस्तांतरित करने की आवश्यकता है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत पूर्वी भारत में धान खरीद की सुविधा में वृद्धि करके हरियाणा और पंजाब से इनकी खरीद को हतोत्साहित करने की जरूरत है।
  • महाराष्ट्र कर्नाटक के क्षेत्र में गन्ने की खेती को नियंत्रित करके इसका विस्तार उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे क्षेत्रों में करने की आवश्यकता है।
  • भारत में प्रतिवर्ष एक निश्चित समय में ही वर्षा होती है जिसकी वजह से वर्षा जल बाढ़ पर जलभराव में परिवर्तित हो जाता है। सरकार एक व्यापक नीति द्वारा इनको कम करके जलभराव को रोक सकती है। साथ ही प्राकृतिक जल निकायों की जल संरक्षण क्षमता को बढ़ाने के लिए प्रयास करने की जरूरत है।

निष्कर्ष

भारत में लोगों के अनुपात से पहले भी जल कम मात्रा में उपलब्ध है। ऐसे में अवैज्ञानिक कृषि नीति और भूमिगत जल का तीव्र दोहन स्थिति को गंभीर बना रहा है। भारत को जल संकट से निपटने के लिए बेहतर ढंग से प्रयास करने की जरूरत है।

स्वच्छ भारत मिशन की तरह जल संरक्षण के लिए भी प्रयास करने होंगे। मजबूत इच्छाशक्ति और बेहतर रणनीति से भारत आने वाले समय में जल संरक्षण से उबरने की कोशिश कर सकता है।

लेखिका : अर्चना  यादव

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