महाराजा छत्रसाल के गुरु प्राणनाथ

बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल के गुरु प्राणनाथ

गुरु का हाथ यदि शीश पर रख जाए फिर उन्नति के रास्ते अपने आप प्रशस्त होते जाते है l हर बच्चे के जीवन में उसके गुरु का एक अलग ही स्थान होता है l

आज हम बात करेंगे बुंदेलखंड के एक ऐसे शूरवीर के बारे में जिसके गुरु के ज्ञान और आशीर्वाद ने उन्हे बुंदेलखंड केसरी की उपाधि दिलवाई बुंदेलखंड में वे तलवार और कलम के स्वामी के रूप में प्रसिद्ध हैं। , महाराजा छत्रसाल के महान गुरु थे प्राणनाथ l

गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरा गुरुर साक्षत परा ब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः

भरोसा और आशीर्वाद कभी दिखाई नहीं देते हैं, ये हमेशा हमारे साथ अदृश्य रूप से साथ में बने रहते हैंl
स्वामी प्राणनाथ महाराज छत्रसाल के गुरु थे। विक्रम संवत 1744 में ‘महामति श्री प्राणनाथ’ के निर्देशन में ही छत्रसाल का राज्याभिषेक किया गया था। प्राणनाथ जी छत्रसाल के मार्गदर्शक, अध्यात्मिक गुरु और विचारक थे।

जिस प्रकार समर्थ गुरु रामदास के कुशल निर्देशन में छत्रपति शिवाजी ने अपने पौरुष, पराक्रम और चातुर्य से मुग़लों के छक्के छुड़ा दिए थे, ठीक उसी प्रकार गुरु प्राणनाथ के मार्गदर्शन में छत्रसाल ने अपनी वीरता, चातुर्यपूर्ण रणनीति और कौशल से विदेशियों को परास्त किया था।

वे अपने समय के वीर संगठक और कुशल प्रतापी राजा थे lछत्रसाल के गुरु प्राणनाथ आजीवन एकता के संदेश देते रहे। उनके द्वारा दिये गये उपदेश ‘कुलजम स्वरूप’ में एकत्र किये गये।

पन्ना में प्राणनाथ का समाधि स्थल है जो अनुयायियों का तीर्थ स्थल है। प्राणनाथ ने इस अंचल को रत्नगर्भा होने का वरदान दिया था। किंवदन्ति है कि जहाँ तक छत्रसाल बुन्देला के घोड़े की टापों के पदचाप बनी वह धरा धनधान्य, रत्न संपन्न हो गयीl

बुंदेलखंड केसरी के नाम से विख्यात महाराजा छत्रसाल के नाम से प्रख्यात पंक्तियां
इत यमुना, उत नर्मदा, इत चम्बल, उत टोंस।
छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस॥

जिन्हें उत्तराधिकार में सत्ता नहीं वरन ‘शत्रु और संघर्ष’ ही विरासत में मिले हों, ऐसे बुंदेल केसरी छत्रसाल ने वस्तुतः अपने पूरे जीवनभर स्वतंत्रता और सृजन के लिए ही सतत संघर्ष किया। शून्य से अपनी यात्रा प्रारंभ कर आकाश-सी ऊंचाई का स्पर्श किया।

उन्होंने विस्तृत बुंदेलखंड राज्य की गरिमामय स्थापना ही नहीं की थी, वरन साहित्य सृजन कर जीवंत काव्य भी रचे। छत्रसाल ने अपने 82 वर्ष के जीवन और 44 वर्षीय राज्यकाल में 52 युद्ध किये थेl

बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल के गुरु प्राणनाथ जी ऐसे गुरु की कृपा को नमन है l

पन्ना में प्राणनाथ का समाधि स्थल है जो अनुयायियों का तीर्थ स्थल है। प्राणनाथ ने इस अंचल को रत्नगर्भा होने का वरदान दिया था। किंवदन्ति है कि जहाँ तक छत्रसाल बुन्देला के घोड़े की टापों के पदचाप बनी वह धरा धनधान्य, रत्न संपन्न हो गयीl

बुंदेलखंड केसरी के नाम से विख्यात महाराजा छत्रसाल के नाम से प्रख्यात पंक्तियां
इत यमुना, उत नर्मदा, इत चम्बल, उत टोंस।
छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस॥

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काको लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपनो जिन गोविंद दियो बताय। मतलब यह कि गुरु की कृपा से ही गोविंद तक पहुंचा जा सकता है। जब तक गुरु की कृपा नहीं होगी ईश्वर तक नहीं पहुंच सकते।

कहा गया है कि गुरु और गोविंद जब दोनों एकसाथ सामने हों तो पहले गुरु को महत्व देना चाहिए। गुरु ही शिष्य को भगवान तक पहुुंचने का रास्ता बताता है। इसलिए गुरु के वचनों का पालन करना चाहिए।

गुरु के कहे अनुसार चलने पर किसी तरह का कष्ट नहीं होगा। सब तरह के कष्टों से छुटकारा भी मिलेगा। गुरु मानव जीवन से पार जाने का रास्ता बताते हैं।

महामति प्राणनाथ जी विक्रम संवत 1740 में पन्ना पधारे। प्राणनाथ जी की कृपा से महाराजा छत्रसाल ने औरंगजेब को पराजित कर विजयी हुए। उस समय बुंदेलखंड में बहुत संकट था और छत्रसाल ने ऐलान कर दिया कि राज्य में बहुत बड़ा संकट है।

प्राणनाथ जी ने छत्रसाल को आदेश दिया कि घोड़ा दौड़ाओ, हीरा पाओगे। गुरु कृपा से उन्हें पर्याप्त हीरा मिला और राज्य का संकट दूर हुआ। आज भी पन्ना में हीरा का खजाना है। इस भंडार से भारत में हीरा मिलता है।

छत्ता तेरे राज में,

धक-धक धरती होय।

जित-जित घोड़ा पग धरे,

तित-तित हीरा होय ।

बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल के गुरु प्राणनाथ जी ऐसे गुरु की कृपा को नमन है l

डॉ प्रीति सुरेंद्र सिंह परमार
टीकमगढ़ ( मध्य प्रदेश )

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