माता की सेवा से बड़ा कुछ नहीं
साथीयों मुझे बहुत ही गहरा एहसास हुआ एक इंसान की मातृ भक्ति को देखकर की कैसे वो अपनी बूढ़ी माँ की सेवा करता है। दोस्तों कुछ करो कितने भी दयालू बनो , दान धर्म करो , परन्तु यदि वो इंसान अपने माता पिता की सेवा या उनका आदर नहीं करता तो वो कभी भी सुखी नहीं रह सकता।
कहते की इंसान कितने ही जन्म क्यों न ले परन्तु माता का कर्ज वो कभी भी नहीं उतार सकता है। यदि माँ घर में सुखी है तो वो घर अपने आप ही मंदिर बन जाता है। क्योकि माँ सदा ही अपने परिवार और बच्चो के लिए कितनी प्रार्थना और व्रत और धार्मिक अनुष्ठान निरंतरकरती रहती है। किसके के लिए ? स्वंय के लिए क्या , नहीं वो सब अपने बच्चो और परिवार के लिए ही, कठिन से कठिन साधना करती है।
जिन घरो में माता का सम्मान या उनकी उपेक्षा की जाती है। आप उन परिवारों का माहौल देखना ? माना की उनके पास पैसे बहुत होंगे परन्तु मैं दावे से कहा सकता हूँ की उनके घरो में शांति नहीं होगी। घर का माहौल कुछ अलग ही होगा। संस्कार बच्चो में नहीं होंगे। सिर्फ पैसा होगा , परन्तु मानसिकता ठीक नहीं होगी।
मैं अपनी बात को समझने के लिए एक छोटी सी कहानी का सहारा लेता हूँ । मैं कल बाज़ार में फल खरीदने गया, तो देखा कि एक फल के ठेले पर एक छोटा सा बोर्ड लटक रहा था, उस पर मोटे अक्षरों से लिखा हुआ था…।
“घर मे कोई नहीं है, मेरी बूढ़ी माँ बीमार है, मुझे थोड़ी थोड़ी देर में उन्हें खाना, दवा और टॉयलट कराने के लिए घर जाना पड़ता है, अगर आपको जल्दी है तो अपनी मर्ज़ी से फल तौल लें, रेट साथ में लिखे हैं।
पैसे कोने पर गत्ते के नीचे रख दें, धन्यवाद!” मुझे देखकर पहले तो बहुत ही हैरानी हुई की इस तरह से दुकान खोल कर बोर्ड लगा दिया वो भी आज के ज़माने में जहाँ हर इंसान एक दूसरे को लूटने के लिए तैयार रहता है।
साथ ही एक लाइन और भी लिखी थी और उन लाइन ने मेरा दिल जीत लिया “अगर आपके पास पैसे नहीं हो तो मेरी तरफ से ले लेना, इजाज़त है.”.! इसी लाइन के कारण मुझे लगा की कभी भी उसकी दुकान से कोई चोरी नहीं कर रहा है। क्योंकि वो खुद ही बोल रहा है की ले लो बिना पैसे के, कितना भी बड़ा लूटेरा हो , यदि कोई इंसान उससे कहाँ की ले जाओ माल जो आपको ले जाना है, तो निश्चित ही वो लूटेरा एक पैसा लूटकर नहीं ले जायेगा।
मुझे भी फल लेना था तो मैंने इधर उधर देखा, पास पड़े तराजू में दो किलो सेब तोले दर्जन भर केले लिये, बैग में डाले, रेट लिस्ट से कीमत देखी, पैसे निकाल कर गत्ते को उठाया, वहाँ सौ-पचास और दस-दस के नोट पड़े थे, मैंने भी पैसे उसमें रख कर उसे ढंक दिया।
मन ही मन सोचा और बैग उठाया और अपने फ्लैट पे आ गया, परन्तु जो मैंने आज देखा वो दृश्य मेरे दिलो दिमाग से नहीं निकल रहा था। रात को खाना खाने के बाद मैं उधर से निकला, तो देखा एक कमज़ोर सा आदमी, दाढ़ी आधी काली आधी सफेद, मैले से कुर्ते पजामे में ठेले को धक्का लगा कर बस जाने ही वाला था, की वो मुझे देखकर मुस्कुराया और बोला साहब आज तो फल खत्म हो गए।”
मैंने बोला कोई बात नहीं। मैंने पूछा की आपका क्या नाम है तो बोला जी सीताराम, में साथ में चलते चलते बात करते रहे। फिर हम सामने वाले ढाबे पर बैठ गए। मैंने चाय मँगाई, वो कहने लगा, “पिछले तीन साल से मेरी माता बिस्तर पर हैं, कुछ पागल सी भी हो गईं है और अब तो फ़ालिज भी हो गया है, मेरी कोई संतान नहीं है, बीवी मर गयी है, सिर्फ मैं हूँ और मेरी माँ..!
माँ की देखभाल करने वाला कोई नहीं है, इसलिए मुझे ही हर वक़्त माँ का ख्याल रखना पड़ता है। उसके पास बारबार जाना पड़ता है, बाबूजी एक दिन मैंने माँ के पाँव दबाते हुए बड़ी नरमी से कहा, माँ तेरी सेवा करने को तो बड़ा जी चाहता है पर जेब खाली है और तू मुझे कमरे से बाहर निकलने नहीं देती, कहती है, तू जाता है तो जी घबराने लगता है, तू ही बता मै क्या करूँ ?”
न ही मेरे पास कोई जमा पूंजी है। ये सुन कर माँ ने हाँफते-काँपते उठने की कोशिश की, मैंने तकिये की टेक लगवाई, उन्होंने झुर्रियों वाला चेहरा उठाया अपने कमज़ोर हाथों को ऊपर उठाया, मन ही मन राम जी की स्तुति की फिर बोली.. “तू ठेला वहीं छोड़ आया कर, हमारी किस्मत का हमें जो कुछ भी है, इसी कमरे में बैठकर मिलेगा।”
मैंने कहा, “माँ क्या बात करती हो, वहाँ छोड़ आऊँगा तो कोई चोर उचक्का सब कुछ ले जायेगा, आज कल कौन लिहाज़ करता है ? बिना मालिक के कौन फल खरीदने आएगा ?” कहने लगीं.. “तू राम का नाम लेने के बाद ठेला को फलों से भरकर छोड़ कर आजा बस, ज्यादा बक-बक नहीं कर, शाम को खाली ठेला ले आया कर, अगर तेरा रुपया गया तो मुझे बोलना समझा।
बाबूजी ढाई साल हो गए हैं ,सुबह ठेला लगा आता हूँ …शाम को ले जाता हूँ, लोग पैसे रख जाते हैं.. और फल ले जाते हैं, एक धेला भी ऊपर नीचे नहीं होता, बल्कि कुछ तो ज्यादा भी रख जाते हैं, कभी कोई माँ के लिए फूल रख जाता है, कभी कोई और चीज़!! ” परसों एक बच्ची पुलाव बना कर रख गयी, साथ में एक पर्ची भी थी “अम्माके लिए !”
एक डॉक्टर अपना कार्ड छोड़ गए पीछे लिखा था, ‘माँ की तबियत नाज़ुक हो तो मुझे फोन कर लेना, मैं आ जाऊँगा, कोई ख़जूर रख जाता है, रोजाना कुछ न कुछ मेरे हक के साथ मौजूद होता है। न माँ हिलने देती है, न मेरे राम कुछ कमी रहने देते हैं, माँ कहती है, तेरे फल मेरा राम अपने फरिश्तों से बिकवा देता है।
दोस्तों माँ क्या कुछ नहीं करते अपने बच्चो के लिए और आज के ज़माने में बहुत कम लोग अपने माँ बाप को वो स्थान देते है, जिनके वो असली हक़दार है। माँ की वाणी में वो सत्य और आशीर्वाद छुपा होता है, जिस कबच को कोई भी नहीं भेद सकता है।
आप सभी को महाभारत में कुंती माता के आशीर्वाद से दुर्योधन का शरीर एक दम से वज्र का हो गया था न परन्तु दुर्योधन की सोच में खोट था तो उसने मां की पूरी बात नहीं मानी थी और फल क्या मिला सभी लोगो को पता है।
फल वाले को अपनी मां के प्रति पूरा सम्मान और सेवा भाव के साथ श्रध्दा भी है, तो किस तरह उसकी दुकान को स्वंय परमात्मा ने चलाकर उसे स्वाभिलाम्बी बनाकर जो मृतसेवा करवाई है, वो अपने आप में एक मिसाल है। यदि आपके भाव सेवा के है तो परमात्मा भी आपकी मदद करता है। आखिर में, इतना ही कहूंगा की मां से बढ़ाकर इस दुनिया में कोई और हो ही नहीं सकता है।
मैं सभी माताओं को प्रणाम और उनके चरणों को स्पर्श करता हूँ, माँ जैसा और कोई नहीं हो सकता इस संसार में।।

जय जिनेंद्र
संजय जैन “बीना” मुंबई