नारी शक्ति: संस्कारों की जननी, समाज की रीढ़
सम्माननिया नारी शक्ति जीवन मे अनेक अहम भूमिकाओं का निर्वहन करती है । आज की महिला शक्ति एक बेटी, एक बहिन, एक माँ, एक पत्नी , एक कार्यकर्ता आदि जैसे अहम दायित्वों को समन्वय के साथ सफलता पूर्वक निभाती है ।
वे घर, परिवार, समाज एवं अपने दोस्ती का एक साथ कुशल निर्वहन कर सकने में सक्षम है । महिलाओ ने आज बहुत अपने आपको सफलता की उच्चाइयों तक पहुंचाया है, शिक्षा के क्षेत्र में हो या कोई और क्षेत्र, लेकिन उसका श्रेय पुरुष वर्ग को भी जाता है ।
महिला की जिंदगी में पुरुष का सहयोग भी अपेक्षित है । महिला और पुरुष दोनों का सहयोग सोने में सुहागा बनता है ।पुरुष भी अपनी कुर्बानियां देकर महिलाओ को आगे बढ़ाने में सही से सहायक सिद्ध हुए हैं ।
महिला के जीवन में बलिदान कम नहीं होते हैं एक घटना प्रसंग एक अनपढ़ माँ ने अपने बेटे को उसके बाप का साया सिर पर न होते हुए भी तमाम कष्टों को सहते हुए, पढ़ाया लिखाया और इस काबिल उसे बनाया की लोग उसे बहुत ही इज्जत और आदर की नजरो से देखने लगे।
बेटे ने भी अपनी माँ को देखते हुए मेहनत लगन से उच्च शिक्षा ग्रहण करके अपनी माँ को समाज और अपने गांव में सम्मान दिलाया। मातृशक्ति की प्रतिष्ठा संसार में आज से नहीं, सदा से रही है। वैदिक काल में लोपामुद्रा और घोषाबने वेद मंत्रों की रचना की थी, यह बात प्रसिद्ध है।
उपनिषद काल में मैत्रेयी और गार्गी के प्रश्नों की जो चर्चा हुई है, वह भी इतिहास में अंकित है। भगवान महावीर के युग पर दृष्टिपात करें तो भगवती सूत्र में समायोजित जयंती के प्रश्न इस तथ्य के प्रतीक हैं कि हमारे देश में महापुरुषों ने नारी शक्ति को कितना महत्त्व दिया है।
यद्यपि हमारा समाज पुरुषप्रधान समाज है। यहां एक अवधारणा हमेशा से काम करती आई है कि पुरूष की अपेक्षा महिला के बुद्धि कम होती है लेकिन आज हम जिस युग में जी रहे हैं, उस युग की महिलाओं ने प्रमाणित कर दिया है कि बौद्धिक स्तर पर या किसी भी स्तर पर किसी भी क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से पीछे नहीं हैं।
गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी जी के अवदानों को आज हमें स्मृति पटल पर पुनः जीवित करने की अपेक्षा है,शिक्षा के क्षेत्र में, पर्दाप्रथा , आत्मोत्थान, जागृति आदि सभी क्षेत्रों में उन्होंने नारी जाति के उत्थान में अपना बहुत बड़ा काम किया हैं । नारी धैर्य , ममता , करुणा एवं अनेक सद्गुणों की खान होती है।
पुरुष एक परिवार को आलोकित करता है,वहीं नारी दो-दो परिवारों का दायित्व संभालती है।पुरुष काम करके थककर आया कह देते हैं, लेकिन महिला अनवरत 24 घण्टे,365 दिन बिना किसी अवकाश के हरदम अपने दायित्व का निर्वाह करती है।
नारी और नर एक गाड़ी के 2 पहियें हैं,दोनो एक दूसरे के बिना अधूरे हैं।दोनों की एकरूपता ही पूर्ण विकास है। नारी सद्गुणों की खान हैं,वहीं नर भी नारायण से कम नहीं है । वह दोनों का युगल ही सृष्टि का सृजनहार है । यत्र नार्यस्तु पूज्यंते,रमन्ते तत्र देवता।
अतः महिलाओं में क्षमता भी होती है और अनेकों नैसर्गिक गुण आदि भी होते है । ममता, सहज वात्सलय, करुणा, पृथ्वी के समान सहिष्णुता, दृढ़ संकल्प शक्ति आदि भी विद्यमान रहते है। संस्कार निर्माण में महिलाओं की भूमिका विशिष्ट होती है।
आज के दिन हमे नारी नही बल्कि नारी के अंदर बसे नारित्व के गुणों का भी सही से ध्यान आता है| वात्सल्य, स्नेह, ममता, दया, करुणा, बलिदान, सहनशीलता, लज्जा, हिम्मत, शील आदि अनेक – अनेक गुणों को नारित्व ने आत्मसात किया हैं । इन सारे गुणों को धारण करने वाली समस्त नारी जाति को आज के इस महान दिवस पर मेरा नमन ।

प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़)