हरियाणा-दिवस पर काव्य-गोष्ठी का आयोजन
जनवादी लेखक संघ कुरुक्षेत्र-व डा. ग्रेवाल अध्ययन संस्थान द्वारा काव्य-गोष्ठी का आयोजन – ‘हरियाणा-दिवस‘ पर कवियों ने ‘हवाओं में खुशबू बनकर बिखरने‘ का दिया संदेश -मानवता, इन्साफ, यादों, जिन्दगी, बराबरी का गुलदस्ता पेश किया ।
कुरुक्षेत्र:– यहां ‘हरियाणा-दिवस’ के अवसर पर जनवादी लेखक संघ व डॉ.ग्रेवाल संस्थान की ओर से एक भावोत्तेजक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि ओम सिंह अशफ़ाक व सुप्रसिद्ध रचनाकार डॉ.प्रदीप ने की।
संयोजन व संचालन दीपक वोहरा ने किया। प्रिं. एन.के.नागपाल ने अन्त में अपने उद्बोधन में कवियों को इसी तरह बखूबी लिखने के लिए प्रेरित किया। विविध-रंगी भावों में खान मनजीत भावड़िया ने कहा ‘मेरे मन में सबकी चिन्ता, मैं जबर भरोटे आला सूं।दिन रात कमाऊं मैं फेर भी थाली लौटे आला सूं।
करनाल से पधारी शिक्षिका सविता ने कहा
‘समेट लो खुशियों को लम्हों की हर डाल से,
इन्हें सिर्फ़ ख्वाहिशों में न रहने दो।
बिखर जाओ इन हवाओं में खुशबू बनकर,
खुद को जमीन की धूल बनकर मत रहने दो।’
बेहतरीन शिक्षक-लेखक अरुण कैहरवा ने जिन्दगी के बड़े दायरों में कहा कि
चूल्हे में हो आग तो समझो दीवाली है,
घर-घर जलें चिराग तो समझो दीवाली है।
आगे बढ़ते की इच्छाएँ बढ़ती जायें बच्चों में,
लगन जाए जो जाग तो समझो दीवाली है।
लोकप्रिय ग़ज़लगो मनजीत भोला ने कई ग़ज़लें सुनाकर रंग जमाया
‘ मंदिर की बात हो न मस्जिद की बात हो,
मजहबों को छोड़कर अब आदमी की बात हो।’
दीपक मासूम ने बीते लम्हों पर कहा कि
‘पुराने घर की यादें याद आती हैं,
नए घर में हमारा मन नहीं लगता।
मुख़ातिब चाँद से हर रोज होते हैं,
न जाने क्यूं वो अपनापन नहीं लगता।’
संवेदी कवि डॉ.पुरुषोत्तम अपराधी ने यथार्थ और विभ्रम को पेश करते हुए कहा –
‘दूकां पे लटकी तख़्तियाँ कुछ और कहती हैं,
पर भिनभिनाती मक्खियाँ कुछ और कहती हैं।’
जन-कवि ओम सिंह अशफ़ाक ने जनमानस को झकझोरते हुए कहा
‘अगर पहले से बेहतर अक्ल आयेगी नहीं,
तो जिन्दगी से जहालत जायेगी नहीं।
करेंगे बंदोबस्त गर पहले से बेहतर,
महामारी हमें यूं खायेगी नहीं।’
चेतन-कवि दीपक वोहरा (करनाल) ने चेतावनी के स्वर में कहा कि
‘देश बिक गया/ सब कुछ लुट गया/ तुम कुछ नहीं बोले।’
कैथल से पधारे प्रिं. विकास आनन्द ने प्रेम की बात कहते हुए कहा
‘नगमा बराबरी का मशहूर होना चाहिए,
मोहब्बत का दिलों में नूर होना चाहिए।’
जनरल मैनेजर नवजोत सिंह नागरा ने मानवता का गीत गाया
‘सदा देखो अपने दिल में ही खुदा/नहीं होगे मंदिर मस्जिद से जुदा।’
हास्य रस में नागरा ने सुनाया कि
‘कागज पर लिखे मेरे शेयर मेरी बकरी खा गई/चर्चा यह आम कि बकरी शेर खा गई।’
अंबर थानेसरी ने दिन प्रतिदिन बढ़ रहे अन्याय, भ्रष्टाचार, लूटखसोट को दूर कर राम-राज्य की परिकल्पना का गीत सुनाया। वरिष्ठ कवि हरपाल गाफ़िल ने उत्तर आधुनिक चेतना को कहा तो वहीं डॉ.प्रदीप ने इस्राईल द्वारा किए जा रहे जनसंहार पर अश्रुपूर्ण संवेदना व्यक्त की।नौजवान कवि गौरव व नरेश दहिया ने स्त्री अस्मिता और आम आदमी की आकांक्षाओं को खुली कविता में बयान किया।
ज्ञान चंद चौहान (पूण्डरी),नरेश, एडवोकेट रजविन्द्र चन्दी, विकास साल्यान, अंकित, रविन्द्र गासो ने कवियों से संवाद किया। ग्रेवाल संस्थान के महासचिव डॉ.रविन्द्र गासो ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ सूचना दी कि 18 नवंबर को डॉ.प्रदीप के उपन्यास ‘बरगद बाबा’ पर संस्थान में ‘समीक्षा-गोष्ठी की जायेगी। अन्त में कवियों को पुस्तकें भेंट की गईं।
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