राम का राजतिलक | Ram ka Rajtilak
राम राजतिलक : आलेख
( Ram Rajtilak )
राजा दशरथ ने अपने श्वेत केशों को देखकर कहा कि अब मैं वृद्ध हो गया हूं। राम अब युवा हो गए हैं। राम में राज सिंहासन संभालने व शासन की बागडोर चलाने के सभी गुण है। मेरी राय में राम अयोध्या ही नहीं अपितु तीनों लोकों का राज करने में निपुण है। राज दरबार में उपस्थित सभासदों, मंत्रियों, प्रबुद्ध जनों ने राम के राजतिलक की सहमति दे दी।
महाराज दशरथ ने गुरु वशिष्ठ की सम्मति लेकर राजतिलक की तैयारी का आदेश दे दिया। श्रीराम के राजतिलक की खबर सुनकर पूरी अयोध्या में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। समूची अयोध्या नगरी को सजाया जाने लगा।
गुरु वशिष्ठ ने राम के राजतिलक को दिव्य अलौकिक बनाने के लिए स्वर्ण, रजत, शहद, सुगंधित औषधियां, भांति भांति के पुष्प, फल, मेंवे, वस्त्र आदि का प्रबंध करने को सभा में आदेश दिया।
राजतिलक के लिए अंकित धवजायें, स्वर्ण से सुसज्जित हाथी घोड़े, सूर्य का प्रतीक चिन्ह ,स्वर्ण निर्मित सौ घोड़े, श्वेत रजत छत्र, चंवर इत्यादि मंगवाए जाने लगे।
महाराज दशरथ ने राम को बुलाकर समझाया कि पुत्र कल तुम्हारा राजतिलक होना है। मैं तुम्हें कुछ ज्ञान की बातें बताता हूं, कभी विनय भाव का त्याग मत करना, मर्यादा को बनाए रखना, प्रजा को सदा प्रसन्न रखना, इंद्रियों को सदा वश में रखना। मेरी बातों का अनुसरण कर राम तुम हर मुश्किलों और विपत्तियों से सुरक्षित रहोगे और अनुशासन पूर्वक राज कर सकोगे।
पिता से ज्ञान प्राप्त कर राम ने स्वयं को धन्य माना। आज अयोध्या में मंगल गीत गाए जा रहे थे। प्रजा मे नारियां घरों की सजावट कर रही थी। तोरण द्वार लगाए जा रहे थे। लोग झूम झूम कर गा रहे थे
कल होंगे राजाराम, कल होंगे राजाराम।
रचनाकार : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )