रोटियांँ कम भी पड़े तो | रूपक

स्थान – रमा का घर

रोटियांँ कम भी पड़े तो

कमला —-(आते के साथ) दीदी, दीदी,,,,,ॽ
रमा —– क्या बात है कमला बहनॽ
कमला —– आप मुझ पर बिगड़ेगी तो नहीं, दीदी।
रमा —- आखिर हुआ क्या बताओ तो सही।
कमला —- आप हमें वचन दीजिए कि मैंने जो किया है, उस पर आप नाराज नहीं होंगी।
रमा —– नहीं हूँगी, नाराज। मैं वचन देती हूँ तुम्हें। तुम पूरी तरह निश्चित रह मेरी तरफ से। नारी नारी की सहेली होती। मर्द भले ही अपने जेब का पैसा देखता है, लेकिन नारी नारी का सम्मान भी देखती। तकलीफ के दिन में हाथ बँटाती है, मनोबल कभी नीचे नहीं गिरने देती। अब तुम हुई आश्वस्त ॽ
कमला —— हुई।
रमा —- तो कह, संकोच किस बात की?
कमला —— मैं ,,,,,,ने,,,,, एबॉर्शन करा लिया।
रमा —– (जोर से गुस्से में) कमला ,,,,,, आखिर तूने ऐसा पाप क्यों किया? क्यों लिया ऐसा निर्णय, तुमने? तुमने यह जघन्य अपराध किया है। एक माँ की दुनिया में पाप और अपराध दोनों।
कमला —– सियासत नहीं देखती हैं आप?
रमा ——देखती हूँ। लेकिन तुम, उस अंधेरी राह की ओर माँओं को मत ले जाओ जहांँ उम्मीद की जगह सबकी दृष्टि में पाप और अपराध ही दिखे।
कमला —- पाप भी नहीं और अपराध भी नहीं किया है मैंने, दीदी।
रमा -‌— तब तुम ही बता क्या किया है?
कमला —- एबॉर्शन।
रमा -‌— सच सच बता, लड़का था या लड़की ?
कमला —- लड़का, इसीलिए ऐसा किया हमने।
रमा —- (गुस्से में) कमला, तुम्हें यह दुनिया अब माँ भी नहीं कहेगी।
कमला —- और आप?
रमा —– एक मुझे कहने से क्या होने वाला है। बहुमत की दुनिया जो है।
कमला —- कैसी बहुमत की दुनिया, जहाँ बेटी के साथ दरिंदगी हो और वह गूंगी बनी रहे वहीं आपकी नजरों में बनी बहुमत की दुनिया,,,,, कैसी बहुमत की दुनिया जहाँ तरक्की के लिए बेटियांँ आगे पांव बढा़ए और नोची जाए और बहुमत की दुनिया सारी जिम्मेवारी उस बेटी की माँ पर छोड़ दें, वही आपकी नजरों में बनी बहुमत की दुनिया।
रमा —— कमला,,,,,।
कमला —– कोई फर्क नहीं पड़ता मुझे आपकी इस बहुत की दुनिया से। भगवान से मैंने आंँचल फैला कर संतान मांगी थी, लेकिन उनसे मैं यह मांगना भूल गयी थी कि वह हमें जो संतान दे वह हमारी बहू बेटिया की चिंता रखे। उनसे मैंने मांगी थी सिर्फ यह कि वह देश का एक बहुत बड़ा वकील बने, मैं यह भी भूल गयी थी कि पैसे को ठुकरा कर वह निर्दोष का साथ दे। दरिंदे का पक्ष नहीं ले।
रमा —— तुम भविष्य द्रष्टा हो क्या?
कमला —- आप उस माँ सो पूछो दीदी, कि बेटी की व्यथा क्या होती, जिसकी बेटी दरिंदे का शिकार होती है, और उस भेड़िए से लड़ते-लड़ते अपनी जान तक गंवा देती है। आप, उस माँ से पूछो दीदी कि भगवान से उसने यह मांगा था कि उसका बेटा बड़ा वकील होगा तो दरिंदे के विरोध में लड़ेगा? हर्गिज नहीं, आज के दिन ऐसी स्थिति में बेटी की माँ सिहर जाती है, कांप जाती है वह। मर जाना चाहती है बेटी के साथ दरिंदगी होते,,,, और ,,,, और जब एक वकील उस दरिंदे के लिए न्यायालय में खड़े होकर झूठ दलील देता है ,,,, और और वह दौलत के बूते जीत जाता है तो जिंदा ही नहीं रह जाती। इसलिए हमें दरिंदे का पक्ष लेने वाला बेटा नहीं चाहिए, नहीं चाहिए।
रमा -‌— शायद, तुम महानगर की घटना की बात लेकर बोल रही हो।
कमला —- दरिंदगी तो दरिंदगी होती है चाहे वह कही की क्यों न हो। व्यथा भी व्यथा होती है।
रमा —– तूने मेरी जुबान बंद कर दी है।
कमला —– मैं भगवान से बेटियों के दरिंदे के विरोध में लड़ने वाला पुत्र मांगूगी। और उसे अपने दूध की सौगंध दूँगी कि बेटा, जिंदगी में रोटियांँ कम भी पड़े तो क्या भूलकर भी पाले मत बदलना।
रमा – ईश्वर माँओ की व्यथा को समझे,और यह बात समझे सभी भी। ( लाइट ऑफ होता है )

Vidyashankar vidyarthi

विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड

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