विद्या शंकर विद्यार्थी की कविताएं

साहित्य की क्षेत्र में कारोबारी आ गये हैं

साहित्य की क्षेत्र में कारोबारी आ गये हैं
हम ऐसे ही छापेंगे, बाजारी आ गये हैं।

कहते हैं कि एक पेज देंगे कम है क्या
हमारे जैसे औरों में कोई दम है क्या।

लेकिन लेखकीय आपको तो लेना होगा
भाई हमारा कांटों का क्यों बिछौना होगा।

हमारे भी बाल बच्चे हैं उनकी रोटी है
यह मामला बड़ी नहीं बल्कि छोटी है।

लेखनी पकड़े हैं तो हौसला बड़ा कीजिए
सहयोगियों के साथ हौसला खड़ा कीजिए।

चाहेंगे तो हम आपको पुरस्कार दिलाएंगे
आप भी अजीब जनाब खुलेंगे मुस्कराएंगे।

हमें खुशी है सोने को लोग तपाने लगे हैं

हमें लोग दीया समझ कर बुझाने लगे हैं
इधर – उधर की बातों में उलझाने लगे हैं

शायद उन्हें पता नहीं अखलाक हैं हम
जख्म पर दोस्त भी नमक लगाने लगे हैं

सबसे अलग मेरा यह हस्ताक्षर है अपना
पेंसिल की लकीर चुपके से मिटाने लगे हैं

दर्द तो औरों से ज्यादा अपने देते हैं यारों
दुनियादारी कुछ और ही निभाने लगें हैं

उन्हें पता होना चाहिए पत्थर जलता नहीं
हमें खुशी है सोने को लोग तपाने लगे हैं।

जहांँ कवि का होता है अपमान

जब कवि का अपमान होता है
कविता रोने लगती है
कुछ लोग हैं कि
खरीद लेते लेखनी का पूरा प्लेटफार्म
पैसे के बदौलत मार देते हैं – पालहथी
और ले लेते हैं महंथी
जो लिखेंगे छपेगी उनकी
यहीं कवि का हो जाता है अपमान
कवि के पास भाव है/पैसे का अभाव
कवि देखता है अंगार तो अंगार लिखता है
थाली खाली है तो भूख/हाहाकार लिखता है
कविता हृदय टटोलती है/कवि से बोलती है
तुम टूटो मत अपमान में
छोड़ दो उस हासिए को/जहाँ तेरा कोई सम्मान नहीं
जहांँ कवि का अपमान होता है/कविता रोने लगती है।

चहकती चिड़िया आग से बचाना मुल्क

 

जब नायक अपना दायित्व भूल जाए, तो
समझना चाहिए गर्त में जाएगी कहानी

जब नायक पियक्कड़ निकल जाए, तो
समझना चाहिए घर में बढ़ेगी परेशानी

जब नाविक अपनी नाव पर उंघने लगे,तो
समझना चाहिए डूबेगी अब नाव पानी

चहकती चिड़िया आग से बचाना मुल्क
जाकर लाना समुंदर से तुम चोच में पानी।

Vidyashankar

विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड

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