उठे जब भी कलम
उठे जब भी कलम ***** लिखेंगे सच सच हम, खाएं सब कसम! लाज साहित्य की बचायेंगे, किसी प्रलोभन में न आयेंगे। न बेचेंगे अपनी कलम, लेखनी से जनांदोलन छेड़ेंगे हम। उठाएंगे बेबस मजदूरों की आवाज, चाहे महिलाओं की मान सम्मान की हो बात। भ्रष्टाचार रूपी दानव को- लेखनी के दम पर हराएंगे, किसानों की बात…