उठे जब भी कलम
उठे जब भी कलम

उठे जब भी कलम

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लिखेंगे सच सच हम,
खाएं सब कसम!
लाज साहित्य की बचायेंगे,
किसी प्रलोभन में न आयेंगे।
न बेचेंगे अपनी कलम,
लेखनी से जनांदोलन छेड़ेंगे हम।
उठाएंगे बेबस मजदूरों की आवाज,
चाहे महिलाओं की मान सम्मान की हो बात।
भ्रष्टाचार रूपी दानव को-
लेखनी के दम पर हराएंगे,
किसानों की बात भी संसद तक पहुंचायेंगे।
सोशल मीडिया का लेकर साथ-
स्याही का दम दिखाएंगे,
मां सरस्वती का नाम लेकर-
जब भी कलम उठाएंगे;
क्रांति क्रांति और सिर्फ क्रांति लायेंगे।
भ्रांति और अंधविश्वास को जड़ से मिटाएंगे,
गरीब मजदूर किसान जवान को-
उनका हक दिलाएंगे।

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नवाब मंजूर

लेखक-मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

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