और जीवन

और जीवन | Jeevan par kavita

“और जीवन“ ( Aur jeevan )   ऐषणाओं के सघन घन और जीवन। आनुषांगिक भी न हो पाया अकिंचन और जीवन। शांत पानी इतने कंकड़। अंधड़ो की पकड़ में जड़, आत्मा ह्रासित हुई बस रह गया तन और जीवन।। ऐषणाओं.. कहते हैं सबकुछ यहां है, यहां है तो फिर कहां है इतनी हरियाली में बसते…