होम कविताएँ और जीवन कविताएँ और जीवन द्वारा Admin - सितम्बर 5, 2020 688 0 WhatsApp Facebook Twitter Pinterest Linkedin ReddIt Email Print Tumblr Telegram Mix VK Digg LINE Viber Naver और जीवन “और जीवन“ ऐषणाओं के सघन घन और जीवन। आनुषांगिक भी न हो पाया अकिंचन और जीवन। शांत पानी इतने कंकड़। अंधड़ो की पकड़ में जड़, आत्मा ह्रासित हुई बस रह गया तन और जीवन।। ऐषणाओं.. कहते हैं सबकुछ यहां है, यहां है तो फिर कहां है इतनी हरियाली में बसते इतने निर्जन और जीवन।। ऐषणाओं… सूर्य तमस मरुत दीप, मोती बिन ये कैसी सीप मैं हूं या मटमैला दरपन और जीवन। ऐषणाओं… ? लेखक: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी” प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली, जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।) यह भी पढ़ें : इन्द्र का दर्प | Kavita संबंधित लेखलेखक से और अधिक कविताएँ इंसान की पहचान | Insan ki pehchan | Kavita कविताएँ सच कमजोर हो रहा है | Sach kamjor ho raha hai कविताएँ योग विश्व को भारत की देन | Yoga par kavita कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें Please enter your comment! Please enter your name here You have entered an incorrect email address! Please enter your email address here Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ