जागरण करता रहा | Geet Jagran Karta Raha
जागरण करता रहा ( Jagran Karta Raha ) तेरे मन को भाये जो , वह आचरण करता रहा। नींद के पंछी उड़ा कर , मैं जागरण करता रहा।। दीप स्नेहिल बार कर ही ,आयु भर कंटक सहेजे। द्वार पर तेरे हमेशा, अर्चना के फूल भेजे । मैं तो शंकर सा ही बस ,विष का वरण…