धरा | Dhara kavita
“धरा” ( Dhara ) “धरा”नहीं, तो क्या”धरा” || धरती-भूमि-धरा-प्रथ्वी-हम सब का अभिमान है | बसते हैं नर-जीव-जन्तु जो, उन सब पर बरदान है | प्रथम गोद माँ की होती है, दूसरी धरती माता की | प्रथम खुरांक माँ के आँचल से, दूजी धरती माँ की | “धरा”नहीं, तो क्या”धरा” || इसी धरा पर…