प्रवास
प्रवास अश्रुधारा हृदय क्रंदन दहन करता। प्रिय तुम्हारा प्रवास प्राण हरन करता।। नभ में देखा नीड़ से निकले हुये थे आंच क्या थोड़ी लगी पिघले हुये थे, उदर अग्नि प्रणय पण का हनन करता।।प्रिय० तुम कहे थे पर न आये क्या करूं मैं इस असह्य विरहाग्नि में कब तक जलूं मैं, कांच…