प्रवास
प्रवास

प्रवास

 

अश्रुधारा हृदय क्रंदन दहन करता।
प्रिय तुम्हारा प्रवास प्राण हरन करता।।

 

नभ में देखा नीड़ से निकले हुये थे
आंच क्या थोड़ी लगी पिघले हुये  थे,
उदर अग्नि प्रणय पण का हनन करता।।प्रिय०

 

तुम कहे थे पर न आये क्या करूं मैं
इस असह्य विरहाग्नि में कब तक जलूं मैं,
कांच था ये चोट कब तक सहन करता।।प्रिय०

 

बादलों के झुण्ड तो आते ही होंगे
प्यास धरती की बुझा पाते ही होंगे,
गिरती बूंदों से भला कुछ ग्रहण करता।।प्रिय०

 

हे प्रवासी चिद विलासी विचार कर,
सूर्य भी आता है घर थक हार कर,
शेष प्रियतम पास ही तू भ्रमण करता।।प्रिय०

 

?

कवि व शायर: शेष मणि शर्मा “इलाहाबादी”
प्रा०वि०-बहेरा वि खं-महोली,
जनपद सीतापुर ( उत्तर प्रदेश।)

 

यह भी पढ़ें :

और क्रंदन

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here