बिनकहे | Kavita Binkahe
बिनकहे ( Binkahe ) रहते हों इंसान जहाँ वो मकान खंडहर नहीं होते रहते हों जहाँ फकत इंसान वो महल भी खंडहर से कम नहीं होते बुलावा हो फर्ज अदायगी का ही तो वहाँ भीड़ ही जमा होती है आते हैं बनकर मेहमान लोग उनमे दिली चाहत कहाँ होती है शादी का बंधन भी तो…