मधुरिम-बंसत | Madhurim Basant
मधुरिम-बंसत ( Madhurim-Basant ) तुम आये हो नव-बंसत बन कर मेरे प्रेम – नगर में दुष्यंत बन कर कुंठित हो चुकी थीं वेदनाएँ बिखर गई थीं सम्भावनाएँ आज पथरीली बंजर ह्रदय की धरा को चीर कर फिर फूटा एक प्रेम अंकुर….. पतझड़ की डोली हो गई विदा विदाई के गीत गाने लगी वियोगी हवा अतीत…