मरघट की ओर | Marghat ki Or
मरघट की ओर ( व्यंग्य रचना ) बज उठा, चुनावी बिगुल! निकल पड़े हैं मदारी, खेल दिखाने! बहलाने, फुसलाने, रिझाने, बहकाने! उज्जवल —— अपना भाग्य बनाने! जनता का दु:ख -दर्द, जानकर भी, बनते हैं जो अनजाने! आओ दु:खियारों, चलो -चलें, मरघट की ओर, इन मक्कारों की, मिलकर चिता जलाने! जमील अंसारी हिन्दी, मराठी, उर्दू कवि…