रात पूस की!
रात पूस की! **** पवन पछुआ है बौराया, बढ़ी ठंड अति- हाड़ मांस है गलाया! नहीं है कोई कंबल रजाई, बिस्तर बर्फ हुई है भाई। किट किट किट किट दांत किटकिटा रहे हैं, कांपते शरीर में नींद कहां? निशा जैसे तैसे बिता रहे हैं। चुन बिन कर लाए हैं कुछ लकड़ियां- वहीं सुनगा रहे हैं,…