हाँ जीस्त ख़ुशी से ही रब आबाद नहीं करता
हाँ जीस्त ख़ुशी से ही रब आबाद नहीं करता हाँ जीस्त ख़ुशी से ही रब आबाद नहीं करता हर रोज़ ख़ुदा से फ़िर फ़रयाद नहीं करता हाँ शहर में होते कितने क़त्ल न जाने फ़िर इक मासूम को वो जो आजाद नहीं करता मैं पेश नहीं आता फ़िर उससे अदावत से…