भागीदारी | Bhagidari par Kavita
भागीदारी ( Bhagidari ) संस्थाओं में हमारी क्या है? कितनी है? कभी सोची है! इतनी कम क्यों है? हम इतने कम तो नहीं! फिर बौखलाहट बेचैनी क्यों नहीं? कानों पर जूं तक रेंगती नहीं, हम सब में ही है कमी; हालत बहुत है बुरी। न सोचते कभी न विचारते न स्वयं को निखारते! न…