भागीदारी
भागीदारी

भागीदारी

( Bhagidari )

 

संस्थाओं में हमारी
क्या है?
कितनी है?
कभी सोची है!
इतनी कम क्यों है?
हम इतने कम तो नहीं!
फिर बौखलाहट बेचैनी क्यों नहीं?
कानों पर जूं तक रेंगती नहीं,
हम सब में ही है कमी;
हालत बहुत है बुरी।
न सोचते कभी न विचारते
न स्वयं को निखारते!
न अधिकारों, भागीदारी हेतु लड़ते हैं,
बातें बड़ी बड़ी सिर्फ करते हैं;
और तो और आपस में ही लड़ते हैं।
समानुपातिक भागीदारी के लिए-
समानुपातिक शिक्षा समान शिक्षा चाहिए,
शिक्षा को ही हथियार बनाइए।
आपस में न लड़ें हम,
लड़ाई कमजोर न पड़े, रहें सजग हम।
पढ़ लिख आसीन हों पद पर बड़े,
निर्णय लें अब हम भी कुछ कड़े।
हुए बिना विचलित कुछ दूर तक चलें,
कड़वे घूंट चाहे पीने कुछ पड़ें।
तभी मिलेगी कामयाबी,
होंगी राहें आसान,
सब कुछ मुफ्त में नहीं देता आसमान।
लगा दे तू जी जान,
बना धरा पर अपनी पहचान।
चुनौती को अवसर में बदलना सीखो,
मुड़ मुड़ पीछे न देखो।
छोड़ोगे तब कुछ गहरे निशान,
मुश्किलें सारी तेरी हो जाएंगी आसान।
सार्थक हो जाएगी तेरी कामयाबी,
दिलाओगे जब अपनों को उचित भागीदारी।

नवाब मंजूर

लेखकमो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर

सलेमपुर, छपरा, बिहार ।

यह भी पढ़ें : – 

मैंने क्या किया | Kavita Maine kya Kiya

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here