दशानन | Dashanan
दशानन ( Dashanan ) ( 2) जली थी दशानन की नगरी कभी कभी हुआ था वध रावण के तन का जला लो भले आज पुतले रावण के उसने चुन लिया है घर आपके मन का.. मर गया हो भले वह शरीर के रूप मे किंतु कर रहा रमन विभिन्न स्वरूप मे बसा ,हुआ खिल खिला…
दशानन ( Dashanan ) ( 2) जली थी दशानन की नगरी कभी कभी हुआ था वध रावण के तन का जला लो भले आज पुतले रावण के उसने चुन लिया है घर आपके मन का.. मर गया हो भले वह शरीर के रूप मे किंतु कर रहा रमन विभिन्न स्वरूप मे बसा ,हुआ खिल खिला…
दशानन क्यों नहीं मरता है ( Dashanan kyon nahin marta hai ) घर-घर में मंथरा बैठी रावण घट घट बसता है महंगाई सुरसा सी हो गई आदमी अब सस्ता है ना लक्ष्मण सा भाई हनुमान सा भक्त कहां मर्यादा पुरुषोत्तम फिर से आप आओ यहां कलयुग में मर्यादा ढह गई मन में…