दुपहरी जेठ की | Dupahari Jeth ki
दुपहरी जेठ की ( Dupahari Jeth ki ) जेठ की दुपहरी नंगे पांव चलती है, जड़ हो चेतन सभी को ये खलती है। सूख जाता है तब नदियों का पानी, गरम -गरम लू चहुँ ओर चलती है। बेचारे परिन्दे बुझायें प्यास कहाँ, तवे की तरह धरती खूब तपती है। झुलस जाता है कलियों का…