गर है लिखने का शौक | Kavita
गर है लिखने का शौक ( Gar hai likhne ka shauq ) गर है लिखने का शौक तो कविता चुपचाप चली आती है। टूटे-फूटे शब्दों में भी भावनाएं निकल जाती है। हम तो मिश्रित भाषी हैं कभी हिंदी कभी सिंधी कभी पंजाबी कभी गुजराती निकल जाती है। भाषा के झरोखों से दिल की ऋतु…