मैं अनभिज्ञ कब तक रहूं | Geet main Anabhigy Kab Tak Rahoon
मैं अनभिज्ञ कब तक रहूं ( Main anabhigy kab tak rahoon ) मुश्किलें सर पे छाये, अपने मुझसे रुठ जाए। वाणी के तीर चलाए, बोलो मैं कब तक सहूं। मैं अनभिज्ञ कब तक रहूं मार्ग सब अवरुद्ध हो जाए, पग-पग पे तूफां आए। कोई रहे कमियां टटोलता, बात का बतंगड़ बनाए। मंझधार में अटकी…