Ghazal Majboor

मज़बूर | Ghazal Majboor

मज़बूर ( Majboor ) जिस्म से तो नहीं, सोच से मा’ज़ूर हुए हम, आख़िर नफ्स के आगे क्यों मज़बूर हुए हम, इन दुनियावी आसाईशों से, यूँ मुतासिर हुए, कि…..अपने रब्बे-इलाही से ही दूर हुए हम, आख़िर क्यों ख़ुशियाँ दस्तक देगी दर पे मेरे, कि..खुद ही ग़मों के अंधेरे से बे-नूर हुए हम, रोज़ शाम से…