फिर कोई ख़्वाब | Ghazal Phir koi Khwab
फिर कोई ख़्वाब ( Phir koi Khwab ) फिर कोई ख़्वाब निगाहों मे बसाने आजा फिर मेरे घर को करीने से सजाने आजा एक मुद्दत से तरसता हूँ तेरी सूरत को ग़मज़दा हूँ मुझे तस्कीन दिलाने आजा तुझको लेकर हैं परेशाँ ये दर-ओ-दीवारें अपना हमराज़ इन्हें फिर से बनाने आजा जिसको सुनते ही ग़म-ए-दिल…