हिन्दी कविता बेटी | Poem by Sumit
“बेटी” नील गगन को छूना चाहती हूँ, आसमान में उड़ना चाहती हूँ, माँ मुझे भी दुनिया में ले आ मैं भी तो जीना चाहती हूँ । मुझे भी खूब पढ़ने दे माँ, मैं आगे बढ़ना चाहती हूँ। भ्रूण हत्या है एक महा पाप, सबको समझाना चाहती हूँ। सब कर सकती है बेटी भी, जमाने को…